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बुजुर्गों को आँगन में बुला के देखिए Bujurgon Ko Aangan Me Saja Ke Dekhiye Poem



मत समझिए कलम को बेजान,
पन्ने इतिहास के पलट के देखिये।

खुले रहते दरवाजे जहाँ हरदम,
खुदा की दहलीज़ पर आके देखिये। 

जहान लगता सारा जन्नत जैसा,
खुद को खाक में मिला के देखिये। 

आज बच्चे तरसने लगे खेलने को,
आंगन की दीवार गिरा के देखिये। 

खुद ही चले जाएंगे आतताई कैसे,
खुदीराम बोस से पूछ के देखिये। 

इंसान कैसे हुआ जुदा इंसान से,
लहू को लहू में मिला के देखिये। 

शायद भूल चले ये वतन किसका,
बुजुर्गों से नजरें मिला के देखिए।

क्या क्या पा लिया है आज हमने,
बुजुर्गों को आँगन में बुला के देखिए।  

टूट जाएंगे जाने वहम आपके कितने,
नजर से नजर को मिला के देखिये।

आज बोलना भी तो आसान नहीं रहा,
"सच" को जबान पे चढ़ा के देखिये।