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तुम्हारी सविता Tumhari Savita Short Story


ऑफिस से लौटने पर विपिन ने देखा कि सविता कमरे में नहीं थी।
"माँ.....सविता कहा है? "
"बेटा अब तुम्हे क्या बताऊ.....मैंने तुम्हे बहुत समझाया.....मगर तुम नहीं माने। रोज-रोज गड़े मुर्दे उखाडने में लगे रहते थे.....ये सही नहीं था। सविता तो पाँच बजे वाली बस से अपने पिताजी के साथ गाँव चली गयी है। उसे भी खूब समझाया लेकिन मेरी सुनता कौन है इस घर में और हाँ....तेरे लिए एक कागज छोड़ गयी है....ले। बेटा, मेरे नसीब में तो चारों तरफ ठोकर ही ठोकर लिखी हैं, तेरे पिताजी तो चले गए....आज मुझे ये दिन देखने पड़ रहे हैं। तू समझता तो अच्छा था। तू ही बता जब लोग बहु के बारे में पूछेंगे तो मैं क्या कहूँगी......।"  तकिये के नीचे रखा कागज थमाते हुए माँ की आवाज कुछ भर आई थी।

विपिन निढाल होकर कागज पढ़ने लगा......
"विपिन, ना जाने तुम कब समझोगे कि मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूँ। तुम नेक दिल और सच्चे इंसान हो, मगर जानते हो तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी क्या है, तुम्हारी कमजोरी है "शक"। तुम किसी पर यकीन कर ही नहीं सकते। तुम इस आदत के हाथों मजबूर हो चुके हो। जो तुम्हारे सामने है, यकीन करने लायक है, तुम उस पर भी शक करते हो। पहले मैं सोचती थी शायद तुम मुझे लेकर हद से ज्यादा ही पजेसिव हो, मगर मेरा सोचना गलत था। मैंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे अपने पवित्र रिश्ते पर कोई आँच आये। जब कोई लडकी गाँव से पढने शहर जाती है तो उसे कई उंच नीच का सामना करना पडता है। कई गंदे लोग जो अपने नापाक इरादों को अंजाम नहीं दे पाते वो तरह तरह कि बाते बनाते हैं, अब ये तुम्हारे ऊपर है कि तुम किस पर यकीन करते हो। मेरे एक दोस्त ने मुझे जन्मदिन का मेसेज भेजा उसी रोज से तुमने मेरा जीना दूभर कर दिया। जरा सोचो विपिन, कुछ इज्जत तो मेरे पिता की भी होगी। तुम्हारी नजर में किसी लडके को दोस्त बनाना सही नहीं, मगर साथ पढने वाले सभी लड़के गलत ही हों ये जरुरी तो नहीं। चलो छोड़ो, जब मैं तुम्हे पिछले दो सालों में ही यकीन नहीं दिला पायी तो अब कैसे दिला पाऊँगी।
मैं तो बस इतना कहना चाहती हूँ कि शादी से पहले और बाद, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया जिससे मुझे नजर नीची करनी पड़े। सही मायने में इंसान का गिरना तो वो ही होता है जब वो खुद की नज़रों में ही गिर जाए....तुम खुद ही सोचो तुम्हे विश्वास दिलाने की खातिर मैंने क्या क्या नहीं किया। तुम्हारे लिए मैंने अपनी सहेलियों से बात करना.....अपने रिश्तेदारों के यहाँ शादी-ब्याह में आना जाना तक छोड़ दिया। मुझे कभी घूँघट पसंद नहीं था लेकिन तुम्हारे लिए मैंने वो भी किया। मेरा सपना, खुद के पावों पर खड़े होने का, कुछ करने का, वो भी छोड़ दिया जिससे तुम तुम खुश रहो। अगर मैं नौकरी करती तो इससे तुम्हे ही सहारा लगता किसी और को तो नहीं। अगर फिर भी तुम्हे मेरी तरफ से कुछ बुरा लगा हो तो मैं कई बार माफ़ी माँग चुकी हूँ। विपिन, ऐसा नहीं है कि मुझे कुछ पता नहीं, तुमने हर उस इंसान से पूछताछ कि जो मुझे जानता है। मेरे बारे में तो उन्हें पता है मगर जरा सोचो वो तुम्हारे बारे में क्या सोचते होंगे? तुमसे अब और क्या कहना .......कुछ तो मेरी ही किस्मत खराब है जो मैं तुम्हे यकीन नहीं दिला पायी। 
पति पत्नी के रिश्ते में जब विश्वाश न रहे तो फिर बचता ही क्या है? कुछ बातें वक्त के हवाले छोड़ देनी चाहिए। मैंने इस दिन को टालने की बहुत कोशिश की लेकिन माफ करना मेरी भी बर्दाश्त करने कि कोई हद तो होगी। विपिन, अब मैं ये भी नहीं चाहती कि तुम मेरी बातों का यकीन करो......मैं पिताजी के साथ जा रही हूँ.....जिस  रोज  तुम्हे मुझ पर यकीन हो जाए और तुम्हे लगे की मैं सही हूँ, उस रोज मुझे लेने आ जाना। मैंने तुम्हारे कपड़े धोकर अलमारी में जमा दिए हैं....अपना ध्यान रखना।"  -तुम्हारी सविता।