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नसीब Naseeb Hindi Poem


मुरझाने के हर मोड पर हमराही रहा,
जलते आंसुओं से तेरा कर्ज अदा किया है मैंने। 

बेपरदा हुयी हर साजिश, मुझे झूठा ठहराने की,
खुद को बेच, सच को खरीदा है मैंने। 

गुमनाम जीवन की हरेक खुशी हुई,
गमों से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है मैंने। 

रेत के आगोश से तुझे मात दे ए नसीब,
आज तुझसे आजादी पाई है मैंने।