
बलात्कारियों के लिए कौनसी सजा उचित है या होनी चाहिए ये तो देश के बुद्धिजीवी और प्रबुद्ध व्यक्ति तय कर ही लेंगे मगर मैं कुछ और भी सोचता हूँ, जो कुछ इस तरह से हैं-
- १. कोई भी व्यक्ति इस ओर ध्यान क्यूँ नहीं दे रहा कि चाहे वो आदमी हो या फिर औरत उस पर समाज का सीधा सीधा असर पड़ता है. वो रोजमर्रा की छोटी छोटी घटनाओं से प्रभावित होता है. क्या, कहीं हमारे समाज में ही तो दोष नहीं आ गया है. यहाँ ये गौर करने लायक है कि समाज भी बिगडता है.. और सुधरता है.....तभी तो समय समय पर 'समाज सुधारकों' का उदय होता आया है.
- २. क्यों नहीं हम व्यक्ति के निर्माण पर जोर देते...जो कि समाज और राष्ट्र कि नींव का मूल और प्रथम पत्थर होता है.
- ३. क्यों हमारे बच्चों को 'नैतिक शिक्षा' के उन अमूल्य और अनमोल पाठों से वंचित कर दिया गया है जो कभी शिक्षा का मूल विषय हुआ करते थे.
- ४. 'धर्म निरपेक्ष राष्ट्र' की आड़ में कहीं हमें 'नैतिकता और मूल्य विहीन राष्ट्र' कि ओर तो नहीं धकेला जा रहा है.
- ५. बच्चों को एक से सौ तक अंग्रेजी में अल्फाबेट तो याद होते हैं मगर किसी ऋषि, मुनि और समाज सुधारक के नाम क्यों नहीं याद होते.क्यों उनकी जबान पर ये नाम अटक जाते हैं..क्यों कि हम....बच्चों के अभिभावकों की जबान को पहले से ही लकवा मार चुका है...हमें कौनसे याद हैं जो बच्चों को याद होंगे.
- ६. हमारी माताओं और बहनों को कौन है जो इतने छिछोरे कपडे पहना रहा है....कहाँ गयी वो बाप की पगड़ी और माँ की चुनरी ....खुले और ओछे कपडे में Open Society को नहीं दिखाया जा सकता है. मानव साईंक्लोजि को पढ़ें तो इसका उत्तर मिल जाएगा. शरीर को कपड़ों से ढकने की बात कहें तो लोग कहेंगे.....मन साफ़ होना चाहिए...कपड़ों में क्या है...तो फिर सभ्यता के विकास में क्यों हमने वस्त्र धारण किये, सोचने की बात है...क्या समस्त कपड़ों को त्यागने से मोडरन सिविलाइजेसन आ जायेगी ?
- ७. इन्टरनेट पर कोई भी सर्च कीजिये....सबसे पहले वो परिणाम ही आयेंगे जिन्हें लोग ज्यादा देखना पसंद करते हैं...मान लीजिए आप शिला दीक्षित जो कि दिल्ली की मुख्यमंत्री हैं ....Soory for it....दिल्ली कि मुख्य मंत्री '''''''''जी''''''''''''''' हैं ......के बारे में जानना चाहते हैं तो जब आप सर्च करेंगे तो रिजल्ट में लिखा होगा...'Download Hottest Video...Titled Sheela ki jawaani ....Tere Haath Nahin Aaani..? क्यों भई..क्यों कि हम देखते ही वो ही हैं, इसमें गूगल का तो कोई दोष नहीं, वो तो एक प्रोग्राम ही तो है.
- ८. क्यों कोई आर्ट फ़िल्म चल नहीं पाती....और बिकनी सुपर स्टार हो जाती है..है न सोचने की बात....आप ही बताइये 'एक डॉक्टर की मौत' क्यों नहीं चल पायी?
- देखिये इन्हें हम ही तय करते हैं और हम ही इनसे प्रभावित भी होते हैं. हमारे समाज के मूल ताने बाने से, तो क्यों नहीं हमारे समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति ये विश्लेषण करें कि कहीं हमारी नीवं ही तो खोखली नहीं होती जा रही. क्या हमें पुनः इस विषय पर गौर नहीं करना चाहिए.
कल जब मैं फेसबुक पर था तो वहाँ का नजारा कुछ इस तरह से था...
पहले के बच्चे....... ................................चोरी करना पाप है....पाप है........पाप है.
आजकल के फेसबुकिया बच्चे................चोर तो मेरी गर्लफ्रेंड का बाप है...बाप है.







कमी हममे भी है, मानसिकता बदलनी होगी... सार्थक आलेख
जवाब देंहटाएंThanks Sandhya Sharma Ji
हटाएंThanks Sandhya Sharma Ji
जवाब देंहटाएंआपकी सोच सही है.
जवाब देंहटाएंThanks Amit ji.
हटाएंसही बात कही है आपने
जवाब देंहटाएंSanjay ji ham sabko milkar sudhar karne honge.
हटाएंहमें अपनी सोच और मानसिकता बदलनी होगी...बहुत सार्थक आलेख..
जवाब देंहटाएंnice post
जवाब देंहटाएंregards
http://www.toyingoa.com
सराहनीय पोस्ट
जवाब देंहटाएंसक्रांति की शुभकामनाएँ।
आदरणीय/ प्रिय,
जवाब देंहटाएंकृपया निम्नलिखित लिंक का अवलोकन करने का कष्ट करें। मेरे आलेख में आपका संदर्भ भी शामिल है-
मेरी पुस्तक ‘‘औरत तीन तस्वीरें’’ में मेरे ब्लाॅगर साथी | डाॅ शरद सिंह
सादर,
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह