
रूह में कुछ जिंदा दफन है,
बरसों से खामोश लगता हूँ।
कुछ अधजली यादें बटोरी हैं,
अहसानमंद नसीब का लगता हूँ।
आरज़ू थी मुझे भी तेरे दर की,
तेरी गलियों से गुजरा लगता हूँ।
बड़ी दूर तलक भागा था मैं तो,
तेरी नज़रों में तो बेवफा लगता हूँ।
बिक ना पाये उसूल वक़्त रहते,
तेरे बाजार में अजनबी लगता हूँ।
कुछ मिला नहीं तो सब छोड़ दिया,
आज जिंदगी से तो रिहा लगता हूँ।
दोस्तों की दुआओं का असर भी देखो,
इस दौर में भी आज मैं जिंदा लगता हूँ।
"सच" जबां से क्यों फिसलता हर बार,
तू देख आज मैं खुद का दुश्मन लगता हूँ।







mann ko ek sukun deti rachna
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरती से लिखा है आज के दौर को ..बहुत सुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंThe lines express the pain within. however also soothing one.
जवाब देंहटाएंवेदना को अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएं... bahut sundar ... ek se badhakar ek sher ... shaandaar gajal !!!
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.uchcharan.com/
sundar abhivyakti!
जवाब देंहटाएंरुह में जो जिन्दा दफन है उसे मुक्त करना होगा, तब जिन्दा लगना नहीं जिन्दा होने का अनुभव होगा! एक बहुत खूबसूरत दिल को छूने वाली रचना के लिये बधाई!
जवाब देंहटाएंरूह में कुछ जिंदा दफन है,
जवाब देंहटाएंबरसों से, खामोश लगता हूँ।
सुन्दर रचना। साधुवाद।
बेहद उम्दा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंआभार।
bahut hi sundar sero sayari.........har ser hi bhut khubsoorat hai.........badhai
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति| बधाई अरविंद भाई|
जवाब देंहटाएंsundar prastuti...
जवाब देंहटाएंmere blog par bhi sawagat hai..
Lyrics Mantra
thankyou
'bik na paye usool........
जवाब देंहटाएं................ajanbi lagta hoon'
bhvanubhooti aur praktikaran bahut sundar.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
जवाब देंहटाएंसूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी
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