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17.12.10

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इस दौर में भी, जिंदा लगता हूँ..........





रूह में कुछ जिंदा दफन है,
बरसों से खामोश लगता हूँ। 

कुछ अधजली यादें बटोरी हैं,
अहसानमंद नसीब का लगता हूँ।

आरज़ू थी मुझे भी तेरे दर की,
तेरी गलियों से गुजरा लगता हूँ।

बड़ी दूर तलक भागा था मैं तो,
तेरी नज़रों में तो बेवफा लगता हूँ। 

बिक ना पाये उसूल वक़्त रहते,
तेरे बाजार में अजनबी लगता हूँ।

कुछ मिला नहीं तो सब छोड़ दिया,
आज जिंदगी से तो रिहा लगता हूँ।

दोस्तों की दुआओं का असर भी देखो,
इस दौर में भी आज मैं जिंदा लगता हूँ।


"सच" जबां से क्यों फिसलता हर बार,
तू देख आज मैं खुद का दुश्मन लगता हूँ।


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मेरे बारे में...
रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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Comments
18 Comments
18 टिप्पणियां:
  1. बहुत खूबसूरती से लिखा है आज के दौर को ..बहुत सुन्दर गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी पोस्ट की चर्चा कल (18-12-2010 ) शनिवार के चर्चा मंच पर भी है ...अपनी प्रतिक्रिया और सुझाव दे कर मार्गदर्शन करें ...आभार .

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    जवाब देंहटाएं
  3. रुह में जो जिन्दा दफन है उसे मुक्त करना होगा, तब जिन्दा लगना नहीं जिन्दा होने का अनुभव होगा! एक बहुत खूबसूरत दिल को छूने वाली रचना के लिये बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. रूह में कुछ जिंदा दफन है,
    बरसों से, खामोश लगता हूँ।
    सुन्दर रचना। साधुवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहद उम्दा प्रस्तुति ।
    आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. bahut hi sundar sero sayari.........har ser hi bhut khubsoorat hai.........badhai

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति| बधाई अरविंद भाई|

    जवाब देंहटाएं
  8. 'bik na paye usool........
    ................ajanbi lagta hoon'
    bhvanubhooti aur praktikaran bahut sundar.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छू लेता है

    जवाब देंहटाएं
  10. सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

    जवाब देंहटाएं
  11. सूक्ष्म पर बेहद प्रभावशाली कविता...सुंदर अभिव्यक्ति..प्रस्तुति के लिए आभार जी

    जवाब देंहटाएं

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