
पी गया जो कभी खामोश होकर।
गुनगुनाती हैं आज ये सर्द हवाएँ,
चले थे हम किसी के साथ होकर।
हाल-ए-बयां कैसे हो जमाने से,
फूल क्या खुसबू से अलग होकर।
आईना देखा तो ये खयाल आया,
गुजरे थे हम आपकी गली से होकर।
खौफ नसीब का भी अब हो कैसा,
क्या है मुक़द्दर आपसे जुदा होकर।
तमन्ना रही जो हमें आपके दर की,
अब जी रहे बस एक तमन्ना होकर।
हम ले आए कश्ती को किनारे पर,
किनारा मिला भी तो तूफ़ान होकर।
बंजर शाख़ों पे हरे पत्ते खिल आए,
मिलने आई आज बहार लू होकर।
रौशन हो उठे हैं जुगनू सारे आज ,
आपकी यादों में शामिल होकर।
कोई सिखा दे हमें जीने का सलीका
ज़िंदगी बनी कायदों की किताब होकर।
बेअसर हैं सारी कड़वाहटें ज़िंदगी की,
लिपटी तन पर यादें चाशनी होकर।
"सच" जी लिए बहुत खुद की खातिर,
मर जाइए आज तो गैरों के होकर।
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सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंसही कहा है - सच जी लिये बहुत खुद की खातिर
जवाब देंहटाएंम्रर जाइये अब गैरों की खातिर!
सच जी लिए बहुत खुद की खातिर
जवाब देंहटाएंमर जाइए अब गैरों के होकर
बहुत खुब।
accha lika hai
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे भाव हैं..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंकिसी का प्रेम इतना निश्छल होता है , की उसी के सहारे हम जीवन के सब सुख , तहज़ीब और तरक्की पा लेते हैं। प्रेम ही व्यक्ति को जीवन के सही अर्थ देता देता है । हौसला देता है । गिर कर संभलने की ताकत देता है। खुशनसीब हैं वो सभी जिनके पास ऐसा प्रेम हैं जो चाशनी की तरह साथ ही रहता है , और कडवाहटों का असर नहीं होने देता।
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तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.
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