टूटा कोई ख्वाब अधूरा होकर,
गुजरा दिन आज खफा होकर।
रहता जो दिल में ही कहीं,
मिला आज अजनबी होकर।
परवाह तो ना थी कभी जमाने की ,
निकले तो तेरे आगे मजबूर होकर।
हैं हाथों में तो लकीरें बहुत,
गुजरी लेकिन तंगनज़र होकर।
"सच" हुआ यादों का दखल यूं,
भर आया मेरा दिल गजल होकर।
गुजरा दिन आज खफा होकर।
रहता जो दिल में ही कहीं,
मिला आज अजनबी होकर।
परवाह तो ना थी कभी जमाने की ,
निकले तो तेरे आगे मजबूर होकर।
हैं हाथों में तो लकीरें बहुत,
गुजरी लेकिन तंगनज़र होकर।
"सच" हुआ यादों का दखल यूं,
भर आया मेरा दिल गजल होकर।
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रहता जो दिल में ही कहीं,
जवाब देंहटाएंमिला आज अजनबी होकर।
जिंदगी की राहो में कई ऐसे लोग मिलते है जो हमारी रूह तक में समा जाते है फिर भी हम उनके लिए अजनबी ही रहते है। दिल के भावो को अच्छी तरह से शब्दों में पिरोया है आपने। आभार।
बहुत सुन्दर गज़ल..सभी शेर लाज़वाब
जवाब देंहटाएंहैं हाथों में तो लकीरें बहुत,
जवाब देंहटाएंगुजरी लेकिन तंगनज़र होकर।
bahut achchhe..
भर आया आज मेरा दिल ग़ज़ल होकर ....शीर्षक पढ़कर ही दिल भर आया । उम्दा ग़ज़लों की श्रृंखला में एक और कड़ी ।
जवाब देंहटाएंबधाई अरविन्द जी ।
अहसासों से भरी हुई गजल बहुत खूबसूरत है।
जवाब देंहटाएंबसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर गज़ल......वसंत पंचमी की ढेरो शुभकामनाए
जवाब देंहटाएंहैं हाथों में तो लकीरें बहुत,
जवाब देंहटाएंगुजरी लेकिन तंगनज़र होकर।
बहुत सुन्दर गज़ल अरविन्द जी...
लाजवाब,बेहतरीन
जवाब देंहटाएंअरविंद भाई, आपका कहने का अंदाज बहुत प्यारा है। बधाई स्वीकारें।
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समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।