एक बार एक किसान भरी दोपहर में खेत में काम कर रहा था। किसान को गुमान था तो इतना की 'मन जो घड़गी वो बाड़ में बड़गी' अर्थात विधाता ने उस जैसा बुद्धिमान किसी दूसरे को नहीं बनाया है। वो था गाँव का ठेठ ठोठ। किसान ने एक आदमी को सूट बूट लगा कर रास्ते से जाते देखा। किसान ने उसे आवाज़ देकर पास बुलाया। किसान ने उससे पूछा की वो कौन है, कहाँ जा रहा है। राहगीर ने बताया की वो जानवरों का डाक्टर है, इलाज करने जा रहा है। किसान ने पूछा की क्या वो उसे भी डाक्टर बना सकता है। डाक्टर ने जवाब दिया की इस के लिए काफी पढ़ना पड़ता है, मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर कोई डाक्टर बन पाता है। इस पर किसान ने मूँछों पर हाथ फेरते हुए कहा की उस से ज्यादा मेहनती दूसरा कौन हो सकता है, वो तो एक दिन में पंद्रह बीघे जोत डालता है। किसान ने डाक्टर के साथ रह कर काम सीखने का प्रस्ताव रखा। डाक्टर ने भी पीछा छुड़ाने के लिए हाँ भर दी। ऊंट गाड़ी को खेत में ही छोड़ किसान डाक्टर के पीछे पीछे हो लिया। थोड़ी देर में वो दोनों एक गाँव में पहुंचे। डाक्टर ने गाँव वालों से पूछा की अगर उनके गाँव में कोई बीमारजानवर है तो वो इलाज करवा लें। एक व्यक्ति ने बताया की उनकी ऊंटनी बीमार है।
"क्या ऊंटनी कल खेत में गयी थी ? " डाक्टर ने पूछा।
"हाँ कल गयी तो थी...... और तभी से इसकी तबीयत खराब चल रही है।" मालिक ने जवाब दिया।
"क्या खेत में कुछ खाया था इसने?" डाक्टर साहब ने गलें पर हाथ फेरते हुए पूछा।
"हाँ डाक्टर साहब ये खेत में तूंबा खा रही थी।" मालिक ने जवाब दिया।
डाक्टर साहब ने थैले से लकड़ी का घोटा निकाला और ऊंटनी के गले पर ज़ोर से ठपकारा। घोटे की चोट से गले में अटका हुया तूंबा नीचे सरक गया और ऊंटनी झटपट खड़ी हो गयी।
इस पर डाक्टर के साथ काम सीखने आए किसान ने धोती की लाँग कसते हुये कहा " हाँ रे भाई डाक्टर, एक बात तो बता.....क्या तेरे को मैं पागल लग रहा हूँ या तूने मेरे को अनपढ़ समझ रखा है ? तू तो कह रहा था की डाक्टरी सीखने में कई साल लग जाते हैं, काफी मेहनत करनी पड़ती है, मैंने तो यहाँ खड़े खड़े ही तेरी सारी विद्या सीख ली। और तेरे पास है भी क्या, बस ये छोटा सा घोटा ! मेरे साथ चल कर देख.....पूरे बीस किलो का घोटा धरा है भीराण पर...मेरा दादा दे कर गया था मरने से पहले। आज से "हम भी डाक्टर हूँ।"
अगले रोज किसान ने सन्दूक से नयी धोती निकाली। ऊपर चमचमाता सफ़ेद कुर्ता और कंधे पर चादरा । थैले में बीस किलो का घोटा रख डाक्टरी करने घर से निकल पड़ा।
चलते चलते वो एक गाँव में पहुँचा। गाँव के बड़ गट्टे पर खड़े होकर किसान ने ज़ोर से आवाज़ लगाई " हाँ भाई......डॉक्टर आया है। किसी न कोई बीमारी हो, रात को नींद ना आती हो तो ठीक करा लो। सारी बीमारी यहीं ठीक की जायेगी। किसी का कोई जानवर कहना ना मानता हो, मनमानी करता हो.........या बीमार चल रहा हो तो फटाफट चंगा किया जाएगा।"
एक गाँव वाले ने कहा " डाक्टर साहब, हमारे यहाँ कोई जानवर तो बीमार नहीं है मगर मेरी दादी काफी लंबे समय से बीमार चल रही है, बस उसे ठीक कर दीजिये, भगवान आपका भला करेगा।"
"ल डोकरी न ठीक करना कौनसी बड़ी बात है। शर्तियाँ इलाज रखता हूँ, मैं कोई अनाड़ी नहीं। पूरी डाक्टरी सीख राखी है मैंने, किधर है तेरी दादी, देखू तो सही कौनसी बीमारी है डोकरी को।" डाक्टर साहब ने जवाब दिया।
डाक्टर साहब ने डोकरी के गले पर हाथ फेर कर पूछा " र ये डोकरी कल खेत में गयी थी क्या ?"
"कैसी बात करतें हैं आप भी डाक्टर साहब, इसको तो खाट पकड़े तीन महीने होने को आए, ये भला खेत में कैसे जा सकती है।" घर वालों ने जवाब दिया।
"देख भाई, जे तन तेरी डोकरी का इलाज करवाना हैं तो जवाब हाँ में ही देना पड़ेगा।" डाक्टर साहब ने लाँग संभालते हुए हिदायत दी।
घर वालों ने भी सोचा की उन्हे तो इलाज करवाने से मतलब हैं, हाँ और ना में क्या रखा है, सो वो हाँ भरते गए।
"हाँ डाक्टर साहब गयी थी।" घर वालों ने जवाब दिया।
"खेत में डोकरी कोई तूंबा खा गयी थी क्या ?" डाक्टर साहब ने पूछा।
"हाँ डाक्टर साहब....जब आप कह रहें हैं तो जरूर इसने तूंबा ही खाया होगा।" घर वालों ने जवाब दिया।
इतना सुनते ही डाक्टर साहब ने थैले में से बीस किलो का घोटा निकाला और डोकरी के गले पर पूरा जोर लगा कर दे मारा। डोकरी वैसे भी जाऊँ जाऊँ तो कर ही रही थी, रही सही कसर घोटे ने निकाल दी। डोकरी ने खाट पर ही दम तोड़ दिया।
मामला पंचायत तक पहुँचा। पंचों ने कहा की डोकरी ज्यादा दिनों की मेहमान तो नहीं थी मगर डाक्टर को भी उसके किए की सजा मिलनी चाहिए। डाक्टर के गले में अंगारों से भरी हँडिया लटका कर उसे पूरे दिन धूप में खड़े रहने की सजा सुनाई गयी।
पूरे दिन धूप में खड़े रहने के बाद आखिरकार डाक्टर साहब जैसे तैसे रात को घर लौट आए।
अगले रोज डॉक्टर बना किसान एक नयें गाँव में गया और बड़ गट्टे पर खड़े होकर कहने लगे " देखो जी डाक्टर आया है....हर बीमारी का पक्का इलाज किया जाता है...............मगर एक शर्त पर........अगर कोई मर मरा गया तो मैं धूप में खड़ा कतई नहीं होऊँगा..........सीधी सी बात है।"
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:) अच्छा है डॉक्टर साहब ने शर्त रख दी.... मरीजों को ईश्वर ही बचाए
जवाब देंहटाएंसही ही कहा गया है - "जिसका काम उसी को साजे , और करे तो डंडा बाजे"
जवाब देंहटाएंkahani bahut hansane vali h
जवाब देंहटाएंवाह, कहानी पढ़कर बचपन याद आ गया !
जवाब देंहटाएं:):)
जवाब देंहटाएंजको कम ..बी नै ही साजे ......राम राम जी ...खुशी हुई थारा ब्लॉग पर आकी .........सीकर स्यूं ..झुंझुनू को न्युतो है .............
जवाब देंहटाएंनीम हकीम खतरे जान।
जवाब देंहटाएंवाह ! कहानी पढ़ के मजा आ गया !! बहुत खूब लिखा है आपने .....
जवाब देंहटाएंसही ही कहा गया है - "जिसका काम उसी को साजे , और करे तो डंडा बाजे"
आधी अधूरी जानकारी प्राणघातिका ही होती है ....
जवाब देंहटाएंमनोरंजक कहानी है।
जवाब देंहटाएंपढ़कर मजा आ गया।
मनोरंजक और शिक्षपाद ... जिसका काम है उसे ही करना उचित है ...
जवाब देंहटाएंवाह! कितनी अच्छी बोध कथा!
जवाब देंहटाएंअक्ल कब आयी होगी डाक्टर साहब को!
कृपया ब्लाग को सुधारे. कई पाप-अप टाइप के चित्र आ जाते हैं जो पढ़ने में बाधा उत्पन्न करते हैं...
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