पतंजलि दिव्य द्राक्षासव के फायदे Divya Drakshasava Benefits Uses Doses
पतंजलि दिव्य द्राक्षासव के फायदे Divya Drakshasava Benefits Uses Doses पतंजलि द्राक्षासव के घटक द्राक्षासव के निर्माण में निम्नलिखित औषध द्रव्यों का प
पतंजलि दिव्य द्राक्षासव क्या है ?
पतंजलि दिव्य द्राक्षासव एक आयुर्वेदिक ओषधि है। इस ओषधि के सेवन से आप संग्रहणी, बवासीर, क्षय, दमा, खाँसी, काली खाँसी, और गले के रोग, मस्तक रोग, नेत्र रोग, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, कृमि रोग, पीलिया, कामला, आमज्वर आदि विकारों में लाभ प्राप्त कर सकते हैं। द्राक्षासव पौष्टिक और बलवर्धक होता है। द्रक्षासव या द्राक्षा से निर्मित ओषधियां पेट की बीमारियों में विशेष रूप से लाभकारी होती हैं, यथा द्राक्षासव, दृक्षावलेह आदि। आइये जान लेते हैं की द्राक्षासव के प्रमुख फायदे क्या होते हैं। द्राक्ष का अर्थ है अंगूर का आसव द्राक्षा का अर्थ है अंगूर और "आसव" का अर्थ है आसुत या रस, इस प्रकार "द्राक्षासव" का अर्थ है अंगूर का रस।
पतंजलि द्राक्षासव के प्रमुख फायदे
द्राक्षासव ओषधि उदर विकार और पाचन तंत्र के विकारों में सबसे अधिक श्रेष्ठ परिणाम देने वाली होती है। यह पाचन तंत्र को मजबूत करके पाचन क्रिया को दुरुस्त करती है।
- पतंजलि दिव्य द्राक्षासव के उपयोग से भोजन में अरुचि दूर होती है और भूख में वृद्धि होती है। द्राक्षासव ओषधि के सेवन से शारीरिक ताकत में वृद्धि होती है और शरीर को पोषण मिलता है।
- शारीरिक थकावट और आलस्य दूर होता है।
- यह ओषधि जठराग्नि को उत्तेजित करती है।
- बुखार या कुछ पुरानी बीमारियों के पश्चात होने वाली कमजोरी को दूर करने में सहायक है।
- कब्ज, भूख में कमी, गैस, पेट फूलना, सूजन आदि में लाभकारी है।
- मांसपेशियों को मजबूत करने में सहायक है।
- यह पित्त स्राव को बढ़ाता है।
- पाइल्स, खून की कमी में द्राक्षासव लाभकारी होता है।
- यह लिवर की कमजोरी को दूर करने में सहायक है।
- अनिंद्रा को दूर करने में भी सहायक है।
- अरुचि, आलस्य, थकावट व बेचैनी को दूर करने में लाभकारी है।
- रक्तार्श (खूनी बवासीर) विकार में लाभकारी है।
- उदावर्त में लाभकारी है।
- रक्तगुल्म, नेत्र रोग, शिरोरोग, गले के रोग, ज्वर,आम विकार, पाण्डु व कामला आदि रोगों में श्रेष्ठ परिणाम देने वाली ओषधि है।
- ग्रहणी रोग में द्राक्षासव के सेवन से विशेष लाभकारी परिणाम प्राप्त होते हैं और खाना खाते ही मरोड़ उठना बंद होता है।
- अर्श/बवासीर रोग में द्राक्षासव के सेवन से लाभ मिलता है। यह बिना किसी साइड इफेक्ट्स के मस्सो को समाप्त करता है।
- उदावर्त रोग में भी द्राक्षासव लाभ कारी होता है।
- अपच ,गैस ,पेट में दर्द ,पेट में संक्रमण आदि विकारों को दूर करता है।
- द्राक्षासव के सेवन से आँतों के कीड़े दूर होते हैं।
- पाण्डु रोग, आम ज्वर पीलिया में लाभकारी है द्राक्षासव का सेवन।
- नेत्र विकार, कुष्ठ विकार, हृदय विकार को दूर करने में सहायक।
- द्राक्षासव का इस्तेमाल रकतोषों के ईलाज में लाभकारी होता है।
पतंजलि द्राक्षासव के घटक
kwath dravya :- munnaka (vitis vinifera) Dr. Fr. 13.913 g,
- Khand 17.391 g,
- Madhu 17.391 g,
- Water Q.S.
- Dhaiphool (Woodfordia fruticosa)Fi 278 g,
- Kankol (Piper cubeba) Fr. 0.177 g,
- Laung (Syzygium aromaticum) FI Bud 0.177 g,
- Jaiphal (Myristica fragrans) Sd. 0.177 g,
- Kali mirch (Pipernigrum) Fr. 0.177g,
- Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) St. Bk. 0.177 g,
- Badi elaichi (Amomum subulatum ) St. 0.0177g,
- Tejapatra (Cinnamomum tamala)Lf. 0.177g,
- Naagkeshar (Mesua ferrea) 0.177g,
- Pippal (piper longum) Fr. 0.177 g,
- Chitrak mool ( Plumbago Zeylanica)Rt. 0.177g,
- Cavya (Piper retrofractum) St. 0.177g,
- Piplamool (Piper longum) Rt. 0.177g,
- Sambhalu (Vitix negundo) Sd.0.177g
द्राक्षासव के निर्माण में निम्नलिखित औषध द्रव्यों का प्रयोग किया जाता है –
- मुनक्का
- मिश्री
- शहद
- धातकी पुष्प
- तेजपात
- दालचीनी
- इलायची
- मरिच
- नागकेसर
- लौंग
- जायफल
- चव्य
- चित्रक
- पिप्पली
- पिप्पली मूल
- निर्गुन्डी
- जल
द्राक्षासव के नुकसान / सावधानिया drakshasava ke nuksan / Side effects
- गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
- डॉक्टर की सलाह के उपरान्त ही इसका सेवन करना चाहिए।
- छोटे बच्चों को इसे नहीं देना चाहिए .
द्राक्षासव औषधि की सेवन विधि और मात्रा Doses of Drakshasava
सुबह शाम भोजन के बाद गुनगुने पानी के साथ मात्रा वयस्क 20 से 30 मिलीलीटर और १० वर्ष से काम आयु के बच्चों के लिए 10 से 15 मिलीलीटर।द्राक्षासव औषधि के सेवन सम्बन्धी सावधानियां Precautions of Drakshasava
- द्राक्षासव का सेवन करने से पूर्व चिकित्सक की सलाह अवश्य ही प्राप्त कर लेनी चाहिए।
- इस औषधि को अधिक मात्रा और मनमाने तरीके से नहीं करना चाहिए।
- 10 वर्ष से कम आयु वाले बच्चो को इसका सेवन कराने से पहले चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
- मधुमेह के रोगी को इसके सेवन से पूर्व चिकित्स्क की सलाह प्राप्त कर लेनी चाहिए।
द्राक्षासव के पारंपरिक उपयोग:
- बवासीर
- चिंता और अवसादग्रस्त
- एनोरेक्सिया में उपयोगी
- एनीमिया में उपयोगी
- रक्तस्राव
- गुदा-भगंदरा
- पेट के ट्यूमर
- जलोदर
- आंत में कृमि संक्रमण
- छोटे ट्यूमर
- क्षीणता
- बुखार
- उदर विकार
- विबंध
- पांडु
- कास
- यकृत रोग
- अर्श
- आंत्र विकार
- कोष्ठबद्धता
Patanjali Divya Drakshasav
Useful in anorexia, piles, digestion, general debility, anaemia, insomnia, tuberculosis, asthma, cough and brain tonic.
Useful in anorexia, piles, digestion, general debility, anaemia, insomnia, tuberculosis, asthma, cough and brain tonic.
Baidyanath DRAKSHASAV
Bhaishajya Ratnavali- The Sanskrit word “Draksha” means grapes and “Asava” means distillate or extract. Drakshasav is a traditional Ayurvedic tonic prepared by fermentation method containing self-generated alcohol. It is beneficial for maladies such as digestive impairment, respiratory problems and weakness and exhaustion. It calms vata and pitta doshas.goog_2026690105
Bhaishajya Ratnavali- The Sanskrit word “Draksha” means grapes and “Asava” means distillate or extract. Drakshasav is a traditional Ayurvedic tonic prepared by fermentation method containing self-generated alcohol. It is beneficial for maladies such as digestive impairment, respiratory problems and weakness and exhaustion. It calms vata and pitta doshas.goog_2026690105
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इस ब्लॉग में लिखी गई बातें सिर्फ जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह की बीमारी होने पर स्वयं इलाज करने के बजाय अपने चिकित्सक से संपर्क करें। Arvindjangid.blogspot.com किसी भी तरह की कोई जिम्मेदारी नहीं लेता।