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चाय Chay


इन  सफेदपोशों ने लगता है अब "चाय" के खिलाफ भी मोर्चा खोल लिया है, कहते हैं की चाय पीने से कैंसर की बीमारी लग जाती है............और  ये "अनहायजेनिक" भी होती है, इसलिए चाय नहीं कॉफी पीनी चाहिए। काफी पीने से "फील गुड" होता है और ये अपर सोसाइटी का एंट्रैन्स होती है।  लेकिन जो मजा चाय मैं है वो कॉफी मैं कहाँ ? इस देश में अगर कोई सर्व सुलभ पेय है तो वो है "चाय"। चाय तो सड़क के किनारे कचरे के ढेर के पास खड़े ठेले पर भी पिई जा सकती है, अब कॉफी को तो नहीं पी सकते न यहाँ पर। कॉफी का अपना एक "स्टैंडर्ड" है, एक तहजीब है.......ये खानदानी होती है। कॉफी किसी गंभीर मुद्दे पर ली जाती है......... और इसे धीरे धीरे पीते हैं । जबकि चाय पीने का कोई वक्त नहीं होता, कोई खास तरीका नहीं होता है......रही बात गंभीर मुद्दों की तो गरीब आदमी के  सारे गंभीर मुद्दे शुरू ही चाय पीने के बाद होते  हैं। अब इनको कौन समझाये की एक चाय से मजदूर पूरा दिन भूखे पेट निकाल देता है। चाय ही एकमात्र सहारा है हमारी आधी से ज्यादा आबादी का। चाय शादी में पिई जाती है तो शोक में भी। मैं इस बारे में सोच ही रहा था की थड़ी वाले ने कहा "बाबूजी वो बोर्ड आप जैसों के लिए ही लगाया है" ........ मैंने बोर्ड को पढ़ा तो उस पर लिखा था "यहाँ फालतू बैठकर अपना समय बर्बाद ना करें।"