मुरझाने के हर मोड पर हमराही रहा,
जलते आंसुओं से तेरा कर्ज अदा किया है मैंने।
बेपरदा हुयी हर साजिश, मुझे झूठा ठहराने की,
खुद को बेच, सच को खरीदा है मैंने।
गुमनाम जीवन की हरेक खुशी हुई,
गमों से दोस्ती का हाथ बढ़ाया है मैंने।
रेत के आगोश से तुझे मात दे ए नसीब,
आज तुझसे आजादी पाई है मैंने।







वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंगजब कि पंक्तियाँ हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
अन्तिम दो पंक्तियां बहुत सुन्दर हैं..
जवाब देंहटाएंati sunder sabhi line kuch kah rahi hai. dhanyabad.
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