सभी तो खामोश हैं,
जमाने के दस्तूर के आगे,
चेहरों पर छाई जो अजीब सी ख़ामोशी,
उसे, बेबसी का नाम दो,
रोज कितने अरमान,
यूँ ही दफ्न होते हैं दिलों में,
है जो, रजा ए नसीब,
उसे, इंतकाम का नाम दो,
दिल का आसुओं से रिश्ता,
लगता कोई पुराना है,
दिल से रिस पड़ी जो बुँदे,
उन्हे, मोतियों का नाम दो.
आग से परवाने का,
बस स्वार्थ का साथ नहीं,
जलकर भी जो रहे हैं चमक,
उन्हे, शहीद ए मोहब्बत का नाम दो.
मुझे शिकायत नसीब से,
किसी और से नहीं,
जब कभी तुम्हें भी हो कोई शिकायत,
उसे, इकरार ए वफ़ा का नाम दो।







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जवाब देंहटाएंदिल से रिस पड़ी जो बूँदें , उन्हें मोतियों का नाम दो...
अरविन्द जी,
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति है आपके लेखन में। एक नयापन भी ।
Quite innovative indeed !
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अरविन्द जी अन्यथा लेने का तो प्रश्न ही नही उठता। आप सभी भाईयों का सुझाव हमेशा से मार्गदशZक रहा है मेरा। अब आपको ये शिकायत करने का मौका नही मिलेगा।
जवाब देंहटाएंआग से परवाने का
बस स्वार्थ का साथ नहीं
जलकर भी जो रहे हैं चमक
उन्हे, शहीद ए मोहब्बत का नाम दो।
बहुत खुब। गहरे भाव लिए सुन्दर रचना।
बहुत बढ़िया .
जवाब देंहटाएंकाँल करें - 09425205969
बेहतरीन अभिव्यक्ति..... मन के संवेदनशील भावों को समेटे ....
जवाब देंहटाएंगहरे भाव संजोए है!! बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....मन के भावों को खूब शब्द दिए हैं ..
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