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बाकी तुम्हारी मर्जी Baki Tumhari Marji Poem


रामप्रसाद जिस कार्यालय में कार्य करता था उसी कार्यालय में गुप्ता जी भी वरिष्ठ लिपिक पद पर कार्यरत थे। गुप्ता जी के दिल का बाईपास हो चुका था, उम्र भी लगभग सेवानिवृति के आस पास। वे अक्सर रामप्रसाद को अपने बेटे की तरह समझाते हुए कहा करते थे  "देखो रामप्रसाद !, वैसे तुम्हे समझाना तो ऊंट को बस में बैठाने जैसा ही है, लेकिन अभी तुम्हारा खून गरम है, जरा संभल के नौकरी किया करो, अधिकारी तो पत्थर की दीवार होता है, इससे टकराने से तुम्हारा ही माथा फूटेगा, तुम्हारी शिकायतों की जाँच करने को कौन सा हरिश्चंद्र आने वाला है, नीचे से लेकर ऊपर तक सब बिक चुके हैं, अपनी नन्ही बेटी का खयाल करो, तुम्हारी माँ को देखों, तुम्हारी वजह से बुढापे में भी कितनी परेशान रहती है ? तुम्हारी व्यक्तिगत पंजिका ( पर्सनल फाइल ) में अब नया चेतावनी पत्र (मेमोरेंडम) लगाने को जगह तक भी नहीं बची है........बाकी तुम्हारी मर्जी।"