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तुमने एक दिन मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी.......




बात उन दिनों कि है जब रामप्रसाद बाड़मेर जिले के एक दूरदराज विद्यालय में लिपिक पद पर कार्यरत था। एक रोज बड़े साहब की श्रीमती जी ने रामप्रसाद से कहा की वो एक पार्टी करने वाली हैं और रामप्रसाद को पार्टी में कविता सुनाने आना होगा। रामप्रसाद ने कुछ सोचकर जवाब दिया की ना तो उसे मॉडर्न पार्टी पसंद है और ना ही पार्टी में अपनी कविता सुनाना भी।

अगले रोज बड़े साहब ने रामप्रसाद को अपने चेम्बर में बुलाकर कहा की जो भी रामप्रसाद ने किया वो सही नहीं था, लेकिन रामप्रसाद भी अपनी बात पर अड़ा रहा।

लगभग पाँच साल बाद.................

एक रात ठीक ग्यारह बजे रामप्रसाद के गाँव से फोन आया कि रामप्रसाद की माँ की तबीयत बहुत खराब है, गाँव वालों ने उसे अस्पताल में पहुँचा दिया है। रामप्रसाद तुरंत गाँव रवाना होने की तैयारी करने लगा। बाहर सड़क पूरी तरह से सुनसान थी। रामप्रसाद ने बड़े साहब के घर जाकर विनती की "श्रीमान जी रात बहुत हो चुकी है, मेरी माँ बहुत बीमार हैं, हो सके तो सरकारी वाहन से मुझे नजदीकी कस्बे तक छुड़वा दें जहां से मैं कोई साधन कर लूँगा ।"

बड़े साहब ने चश्मा लगाते हुये जवाब दिया " भूल गए रामप्रसाद, तुमने एक दिन मेरी पत्नी की बेइज्जती की थी....अब किस मुँह से आये हो.....अब जाओ यहाँ से और फिर कभी मुझे रात में डिस्टर्ब मत करना ।"

रामप्रसाद ने अपने थैले में से टॉर्च निकाली और पैदल ही कस्बे की और बढ़ने लगा।

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रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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Comments
21 Comments
21 टिप्पणियां:
  1. इस लघु कथा में ...दो बात स्पस्ट होती है
    १.रिश्तों का तार -तार होना
    २ .पुरानी बातों की गठरी को ढोना

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  2. अरविन्द जी इस कथा से क्या सीख मिलती है .....?

    यही कि दिल में पुरानी बातों की खुन्दस रखें ......?

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  3. @ हरकीरत जी,

    कतई नहीं रखनी है.

    जवाब देंहटाएं
  4. ऐसे ही वेबकुफ़ लोग है समाज है.. पर रामप्रसाद जी जैसे लोग भी है,, जिन्दाबाद..

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  5. बहुत ही सटीक लिखा है आपने!

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  6. बदले की भावना से ग्रस्त लोगों की मानसिकता - जो अच्छे बुरे में भेद नहीं कर पाती - पर सटीक और करारा ताना मारती यह लघु कथा दिल को छू गयी| बहुत बहुत बधाई बन्धुवर| हिन्दुस्तानी छंद विधा के विकास के लिए आरंभ किए गये इस ब्लॉग पर भी कभी पधारिएगा:-
    http://samasyapurti.blogspot.com

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  7. dushmani aur insaniyat dono ekdam alag-alag cheejen hain.yah kabhi nahin bhulna chahiye.

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  8. अरविंद जी,
    आपकी लघुकथा सोचने पर विवश करती है !
    बड़े ही गंभीर भाव भरे हैं इसमें !
    धन्यवाद ,
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  9. सचमुच आँसूं खजाना है, किस्मत वाले ही प्रेम के अश्रु बहा सकते हैं ! सुंदर रचना के लिये बधाई !

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  10. dono me fark tha ... taklif apni jagah thi, per baat yahan ek buzurg kee tabiyat kee thi

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  11. लोगों में बदले की भावना प्रबल है। संवेदनशीलता का अकाल है। यथार्थ का चित्रण करती बेहतरीन प्रस्तुति।

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  12. छोटी-छोटी बातों में बंट गया संसार...

    जवाब देंहटाएं
  13. आज के समाज मे ऐसी स्थितियां अक्सर देखने को मिलती है ।
    मगर यदि हम सही है सच्चे है ईमानदार है तो , मुश्किले भी एक समय के बाद अपना रास्ता बदल लेती हैं ।

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  14. अरविंद जी, आपने विषय बढिया उठाया है पर इसमें कहानीपन का अभाव है। शुभकामनाएं। पुखराज।

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