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कोई नहीं मैं ही हूँ गुस्ताख़ Koi Nahi Main Hu Gustakh Hindi Short Story

मुस्ताख को गाँव वालों ने बताया की आज पटवार भवन में पिछली साल जो सूखा पड़ा था उसकी एवज में सरकार पंद्रह सौ रुपये बाँट रही है, सो वो भी सवेरे-सवेरे पैसे लेने को पहुँच गया पटवार भवन और लग लिया लाइन में। जैसे ही उसकी बारी आई सलाखों के पीछे बैठा बाबू यंत्रवत बोला "पहचान दिखाओ.........नाम बताओ, ........जल्दी बताओ"

"साहब मेरा नाम मुस्ताख है, और ये रही मेरी पहचान" मुस्ताख ने दबी जबान में कहा।

काफी पन्ने पलटने के बाद बाबू ने कहा "नहीं मुस्ताख नाम का कोई किसान नहीं है इस गाँव में"

"नहीं साहब में तो इसी गाँव में रहता हूँ.....यकीन ना आए तो इन गाँव वालों से पूछ लो" मुस्ताख ने बेचैन होकर कहा।

"देखो भाई........मेरे पास जो लिस्ट है उसमें मुस्ताख तो नहीं मगर गुस्ताख़ का नाम जरूर है..हो सकता है तुम्हारा नाम गलत छप  गया हो... तुम ऐसा करो की तहसीलदार साहब से एक चिट्ठी लिखवा के लाओ की लिस्ट में जो गुस्ताख़ है वो ही मुस्ताख है" बाबू ने समझाते हुये कहा।

अगले दिन मुस्ताख तहसीलदार के दफ्तर पहुंचा।

"साहब मेरा नाम मुस्ताख है......." मुस्ताख ने तहसीलदार से कहा।

"क्या चाहते हो..............यहाँ क्यो आए हो..............किसने भेजा है?" तहसीलदार ने पूछा।

"साहब मेरा नाम मुस्ताख है और वो अकाल राहत का पैसा बांटने वाला बाबू कहता है की लिस्ट वाला गुस्ताख़ ही मुस्ताख है, ऐसा कागज बनवा के लाओ......साहब जल्दी से मेरा मुस्ताख वाला कागज बनवा दीजिये.........."

"मेरे पास कोई हातिम ताई की छड़ी तो है नहीं जो खड़े खड़े ही तुझे गुस्ताख़ से मुस्ताख बना दूँ...........लोगों की एडिया घिस जाती हैं, समझे............जाओ बाहर अपनी शिकायत लिखवा दो" तहसीलदार ने गुस्से से कहा।

शिकायत लिखवा कर जब मुस्ताख बाहर निकला तो बाहर बैठे एक व्यक्ति ने पान थूंक कर कहा " तुम गाँव वालों की ना बस यही समस्या होती है.........सीधे अंदर घुसे चले जाते हो..........अंदर वाले वो ही करते हैं जो हम चाहते हैं..........गुस्ताख़ से मुस्ताख बनना चाहते हो.........ये तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है............मैंने तो गांधी को पटेल तक बनाया है..............पाँच सौ लगेंगे........बोलो..........मंजूर"

कागज बनवाकर दूसरे दिन जब मुस्ताख ने कागज अकाल राहत के बाबू को दिखाया तो बाबू बोला   "गुस्ताख़ तो कल ही अपने पैसे ले जा चुका है.....ये देखो उसके अंगूठे का निशान.....चलो हटो"

"लेकिन साहब इस कागज में लिखा है की "गुस्ताख़ ही मुस्ताख है"

 "जब गुस्ताख़,  मुस्ताख बन सकता है तो फिर मुस्ताख भी तो गुस्ताख़ बन सकता है ना...........चलो हटो मुझे और भी काम निपटाने है" बाबू ने झल्ला के कहा।

मुस्ताख हार मान कर गाँव लौट आया। जब उसने बकरियों को पानी पिलाने के लिए खोला तो उसके अब्बा ने चारपाई पर लेटे लेटे पूछा "कौन है.......भई"

मुस्ताख ने जवाब दिया "कोई नहीं मैं ही हूँ........गुस्ताख़"