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बिना नीवन कुण तिरिया....




शबद बाणी (शब्द वानी ) बिना नीवन कुन तिरिया का हिंदी रूपांतरण.

नीवन बड़ी संसार में और नहीं नीवे सो नीच,
नीवे नदी रो रूखड़ो, और वो रवे नदी रे बीच,
नीवे ज्यू आंबा आंबली और नीवे दाड़म दाख,
इरण्ड बिचारा क्या नीवे, ज्यारी ओछी कहिजे साख
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शब्दार्थ:- नीवन - विनम्रता, आभार, नीवे:-झुकना, रुखड़ो:-वृक्ष, आंबा आंबली:-आम का वृक्ष, दाड़म दाख:-अनार, सुखा अंगूर, इरण्ड:-इरण्ड का वृक्ष, साख:-दोस्ती, साथ। 
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इस संसार में विनम्रता सबसे बड़ी है, विनम्रता ही ज्ञान प्राप्ति का पहला चरण है, कहा  भी गया है, "हाथों धरती तौलते थे, जो दिन में सौ सौ बार, वो मानुष माटी मिले, बर्तन घड़े रे कुम्हार" । अज्ञानी घमंड पैदा करता है, जो की ज्ञान प्राप्ति में बाधक है। नदी का वृक्ष नदी में ही रहता है, लेकिन वक़्त पड़ने पर झुक जाता है, झुकने से ही उसका अस्तित्व है। विनम्रता गुणवान होने की निशानी भी है। ज्ञानी व्यक्ति कभी घमंडी नहीं हो सकता है। आम, आंवला,  दाड़ू जिनके फल रसीले होते हैं एंव दूसरों के काम भी आते हैं, फल आने पर  झुक जाते हैं। ज्ञान से ही विनम्रता आती हैं। जैसे इरण्ड किसी काम में नहीं आता है, मोड़ने पर टूट जाता है, उसी प्रकार घमंडी व्यक्ति किसी की मदद नहीं कर सकता है। ऐसे व्यक्ति की दोस्ती  भी ओछी ही होती है. 
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पहलों निवन म्हारे माता पिता ने, उतपत पालन करिया,
दूजों निवन इस धरती माता ने जिन पर पगला धरिया,
बिना नीवन कुण तिरिया...
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शब्दार्थ:- पहलो:- पहला, म्हारे:-मेरे, उतपत:-उत्पन, पैदा करना, करिया:-किया, दूजों:- दूसरा, द्वितीय, ने:-को, पगला:- पैर, धरिया-रखे,। 
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प्रथम आभार, उन माता पिता को जिनके कारण ये संसार देखने को मिला। माता पिता की सेवा करने के लिए इतना ही काफी है, माता पिता स्वंय दुख भोगकर भी अपनी संतान को खुश देखना चाहते हैं। संतान की उत्पत्ति के कारक माता पिता ही होते हैं, इसिलिए प्रथम आभार माता पिता को दिया है। 
दूसरा आभार इस धरती माता को जिस के ऊपर पैर रखकर चलना सीखा, जो की सभी का भार सहती है। 
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तीजो निवन म्हारे गुरु पीरा ने, हृदय उजाला करिया,
चौथो निवन संता री संगत ने, जिन में जाय सुधरिया,
बिना नीवन कुण तिरिया...
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शब्दार्थ:- तीजो- तीसरा, । सुधरिया-सुधरे। 
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तीसरा निवन, आभार उन सभी गुरु फकीरों को जिन्होंने न केवल स्वंय  बल्कि दूसरों को भी जीवन मुक्ति का मार्ग बतलाया। चौथा आभार सभी संतों को जिनकी संगत में जाकर सुधरने का अवसर प्राप्त हुआ। बिना गुरु ज्ञान के सांसारिक मोह माया में ही जीवन समाप्त हो जाता। 
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निवन करूँ म्हारे ज्योति स्वरूप ने, होय इंद्र बरसिया,
अमृत बूँदा बरसन लागि, मान सरोवर सारा भरिया,
बिना नीवन कुण तिरिया...
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शब्दार्थ:- ज्योति स्वरूप - भगवान, बरसिया-बरसे, भरिया-भर गए। 
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आभार उस परम ब्रह्म शक्ति को जो इन्द्र बनकर ज्ञान की बरसात करते हैं। ज्ञान रूपी अमृत बूंदों से इस शरीर के सभी मान सरोवर भर जाते हैं। जब ज्ञान की बरसात होती है तो सांसरिक वस्तुओं से मोह भंग हो, व्यक्ति संतोष, एंव चिर शांति  को प्राप्त करता है।
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भव सागर असंग जल भरिया, भोत डूबा, थोड़ा तिरिया,
गुरु महरा बन ब्रह्मा बोले, भूल भ्रम सब टलिया,
बिना नीवन कुण तिरिया... 
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शब्दार्थ:- भव सागर-संसार, असंग-अथाह, भोत-बहुत, तिरिया-तैर पाये, टलिया- टल गए, समाप्त हो गए । 
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इस संसार में असंख्य मात्रा में जल भरा है, जल से तात्पर्य सांसारिक मोह माया से है, इसमे आकार ज़्यादातर तो डूब जाते हैं, बहुत कम व्यक्ति ही इसको पार कर पाते हैं। इसे वही पार कर सकता है जो गुरु के बताए ज्ञान पर चलता हो। 
गुरु ही ब्रह्म है। उनके ज्ञान देने से भूल भ्रम सभी समाप्त हो गए है। इस जीवन का सार्थक उद्देश्य पता लग गया है। 

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1 Comments
1 टिप्पणियां:
  1. भारत में जितने संत-महात्मा हुये हैं, उनके विचारों पर थोड़ा भी हम लोग चलते तो दुनिया भर की दिक्कते दूर हो जातीं. जिस संख्या में हमारे देश में महापुरुष हुये उस अनुपात के करोड़वें अंश में उनके विचारों पर नहीं चला जाता... आपका धन्यवाद...

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