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रामप्रसाद का तो माथा ही खराब हो चुका है Ramprasad Ka To Matha Short Story


                   रामप्रसाद अपने साथ कार्यरत लिपिक नीरज को कई बार समझाता था की नीरज को उसकी पत्नी के प्रति समर्पित होना चाहिए। अन्य स्त्रियों के साथ चक्कर चलाना सही नहीं है। जिंदगी में यदि दोहरे मापदंड हैं तो रिश्ते नहीं निभाए जा सकते। नीरज को अन्य स्त्रियों से वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा की वो अपनी पत्नी से अन्य पुरुषों के साथ देखना चाहता है।  लेकिन नीरज हमेशा यह कहकर टाल देता था की बहती गंगा में हाथ धो लेने चाहिए, इसमे कोई बुराई नहीं है और अक्सर वो मजाक उड़ाते हुए कहा करता था की रामप्रसाद का तो माथा ही खराब हो चुका है।

                  नीरज की इन हरकतों ने रामप्रसाद और नीरज के बीच दूरियाँ पैदा कर दी थी, लेकिन शायद नीरज को इसकी कोई परवाह भी नहीं थी।

                  इसी बीच रामप्रसाद का तबादला अन्य स्थान पर हो गया। उसे नीरज से मिले काफी समय हो चला था। एक रोज जब रामप्रसाद कार्यालय के किसी कार्य से पुराने कार्यस्थल पर लौटा तो उसकी मुलाक़ात नीरज से हुई। वह इतना कमजोर हो चला था की पहचानना भी मुश्किल था। रामप्रसाद ने नीरज से बात करने की कोशिश की लेकिन उसने रामप्रसाद में कोई रुचि नहीं दिखाई। अन्य कर्मचारियों से पता चला की नीरज के कारनामों का पता उसकी पत्नी को चलने पर वो नीरज को सदा के लिए छोड़कर अपने पिता के घर लौट चुकी थी। नीरज ने बहुत कोशिश की लेकिन वो लौट के नहीं आई।

                   लौटते वक़्त रामप्रसाद मन ही मन सोच रहा था की शायद यही कारण रहा होगा जिससे नीरज उससे बात करने से कतरा रहा था या फिर कोई और......?

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