थकी कलम सोचती है,
लिखते इंसान को देखकर
ये इंसान कितना भोला है,
ज्ञान सारा किताब के हवाले कर,
अपने पास कुछ नहीं रखता है,
इस भोले को कौन समझाये,
अगर ये ना लिखे तो,
शायद कुछ पेड़ ही बच जायें।







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जो कहता हूँ वही जीना चाहता हूँ। जीवन का एक ही उद्देश्य है 'सत्य' के साथ जीना। शायद, मैं बड़ा लापरवाह हूँ, क्योंकि जो जीवन से भी बड़ा था, वो मुझसे गुम हुआ। एक साथ इतने रंगों से पुता हूँ कि रंगों कि पहचान ही धूमिल होने लगी। शायद इस घुटन को जीवन रहते मिटा सकूँ......।
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छोटी सी कविता में आपने बहुत सार्थक बात कही है। अब वक्त आ गया है कि हम पर्यावरण को सम्भाले वरना ये बिगड़ी तो हम कही के नही रहेगें।
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी
जवाब देंहटाएंअपनी बात कहने के लिए आपने नया अंदाज अख्तियार किया है ...गजब .....के सिवा क्या कहूँ ....शुक्रिया
... kyaa baat hai ... bahut badhiyaa !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही पावन भावना को पिरोया है अरविंद जी, बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रेरणादायक और लाज़वाब
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
"माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...
हादसों के शहर में
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद
सार्थक सन्देश .....सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंउम्दा रचना....
gazab ki baat kahi kavita me ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंअभी इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शायद,हम जलवायु परिवर्तन सी त्रासदी का इंतज़ार कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंइस भोले को कौन समझाये,
जवाब देंहटाएंअगर ये ना लिखे तो,
शायद कुछ पेड़ ही बच जायें।
बहुत sunder ....!!
बात तो सही कही आपने ।
जवाब देंहटाएंवर्तमान आवश्यकता को रेखांकित करता सार्थक संदेश...
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
www.najariya.blogspot.com
अरविंद जी, बहुत गहरी बात कहदी आपने।
जवाब देंहटाएंबधाई।
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त्रिया चरित्र : मीनू खरे
संगीत ने तोड़ दी भाषा की ज़ंजीरें।
bhaav keval likhe hi na jate aatmsaat bhi ho jate , to kya baat hoti!
जवाब देंहटाएंsaarthak soch!!