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8.12.10

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शायद कुछ पेड़ ही बच जायें




थकी कलम सोचती है,
लिखते इंसान को देखकर
ये इंसान कितना भोला है,
 ज्ञान सारा किताब के हवाले कर,
अपने पास  कुछ  नहीं रखता है,
इस भोले को कौन समझाये,
अगर ये ना लिखे तो,
शायद कुछ पेड़ ही बच जायें। 

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मेरे बारे में...
रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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Comments
17 Comments
17 टिप्पणियां:
  1. छोटी सी कविता में आपने बहुत सार्थक बात कही है। अब वक्त आ गया है कि हम पर्यावरण को सम्भाले वरना ये बिगड़ी तो हम कही के नही रहेगें।

    जवाब देंहटाएं
  2. अरविन्द जी
    अपनी बात कहने के लिए आपने नया अंदाज अख्तियार किया है ...गजब .....के सिवा क्या कहूँ ....शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही पावन भावना को पिरोया है अरविंद जी, बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही प्रेरणादायक और लाज़वाब

    जवाब देंहटाएं
  5. अरविन्द जी
    नमस्कार !
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति के साथ ही एक सशक्त सन्देश भी है इस रचना में।
    "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  6. हादसों के शहर में
    नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. सार्थक सन्देश .....सुन्दर अभिव्यक्ति
    उम्दा रचना....

    जवाब देंहटाएं
  8. अभी इस ओर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। शायद,हम जलवायु परिवर्तन सी त्रासदी का इंतज़ार कर रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  9. इस भोले को कौन समझाये,


    अगर ये ना लिखे तो,


    शायद कुछ पेड़ ही बच जायें।

    बहुत sunder ....!!

    जवाब देंहटाएं
  10. वर्तमान आवश्यकता को रेखांकित करता सार्थक संदेश...
    मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
    www.najariya.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  11. bhaav keval likhe hi na jate aatmsaat bhi ho jate , to kya baat hoti!
    saarthak soch!!

    जवाब देंहटाएं

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