-->

"बदलने को आया ये दौर आज" Badalne Ko Aaya Ye Dour Aaj Poem





















आप वक़्त के हम वक़्त से ही,
लिए जा रहा वक़्त, कहीं न कहीं। 

पाया क्या, क्या छीना वक़्त ने भी,
रहनी कसक, कहीं न कहीं। 

बेचैनी कैसी जीने में आपको ,
मार डालिए इंसानियत, कहीं न कहीं। 

बड़े एहसान थे नसीब के मुझ पर, 
चुकाए अश्कों ने, कहीं न कहीं। 

आरजू थी कुछ लम्हों की,
रही वक़्त की कमी, कहीं न कहीं। 

ज़माना समझ लेगा गम आपका,
टूट जायेगा भरम, कहीं न कहीं। 

क्या छुपा रहा है सैयाद आज हमसे,
राजदार नजरें, कहीं न कहीं। 

मौजे उठा करती दिल से इजहार को,
वक़्त बीतता यूं ही, कहीं न कहीं। 

हो चला एक अरसा दर दर भटकते,
माँग लीजिए जगह, कहीं न कहीं

बदलने को आया ये दौर आज,
उठ रहा धुआं, कहीं न कहीं। 

****