आम अवाम सुनती है नेता को गौर से,
एक नेता है जो किसी की सुनता नहीं।
सुनता है जो भी नेता, आम अवाम की,
अगले चुनाव में फिर कभी दिखता नहीं।
सड़के हो चली क्यों वीरान अचानक ही,
नेता जी आ रहे हैं किसी का मातम नहीं।
भ्रष्टाचार केवल नेता ही क्यों न करे,
बचानी है कुर्सी कोई बच्चों का खेल नहीं।
हटा लोकतंत्री नियम कायदों की दुकान,
मैं लाल बत्ती हूँ कोई साइकिल वाला नहीं।
तुम नाहक ही लगा बैठे हो आस मुझसे,
जनाब मैं नेता हूँ कोई इंसान तो नहीं।
सुन लो भ्रष्टाचारियों आज "सच" कि भी,
खामोश खुदा के घर देर है अंधेर नहीं।
(क्रमशः)







आदरणीय अरविन्द जांगिड जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
वाह...क्या बात कह दी !!!
मन में उतर गयी रचना...
........बहुत बहुत सुन्दर
good - ratan tea stall
जवाब देंहटाएंरतन जी अब पढ़ने लगे.............आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंनाहक ही लगा बैठे हो आस मुझसे,
जवाब देंहटाएंमैं नेता हूँ, कोई इंसान नहीं।
... beautiful ... good one !!
नेताओं की सच्चाई का सटीक बयान करती हुई बेहतरीन प्रस्तुति के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंइनके बारे में कुछ भी कह लो कम है।
जवाब देंहटाएंक्या बात है...
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