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सच जबां से फिसला हरबार








सच जबां से फिसला हरबार,
उसे पत्थरों से टकराने का शौक बहुत है। 
इंसान को क्यूँ कोई खौफ रहा नहीं,
तेरे शहर में मंदिर तो बहुत है।
दाग चादर में लगा तो जान जाओगे,
मैली चादर दिखाते शरमाना बहुत है। 
पाप की फिक्र नहीं जमाने को,
सुना अभी गंगा में जल बहुत है। 
कलम हौसला रखती है ताज पलटने का,
ये अलग बात, आज मजबूर बहुत है। 
हाथों में गरीबी उतर आई दोस्ती के लिए,
हाथ दोस्ती की आग में जला बहुत है।
तूफान तो एक ही गुजरा था,
उसके गुनाह के गवाह बहुत हैं। 
जाने क्यूँ तोड़ता है ज़माना दिलों को,
तोड़ने के लिए कसमें बहुत हैं।
हाल ए बयां क्या इश्क का जमाने में,
वो जमाने के आगे, रोया बहुत है। 
वक्त ने छीना एक जीने का बहाना,
लोगों से सुना जीने के बहाने बहुत हैं।
फुरसत नहीं जिंदगी का साथ निभाने की,
ग़मों को लफ्जों में अभी ढालना बहुत है।
लिपट तो जाएं ए मौत तेरे दामन से लेकिन,
हाथों में जीने की लकीर, लंबी बहुत है।
"सच" कुरेद लूँ जख्म कुछ पुराने आज,
अभी पथराई नजरों में, नमी बहुत है। 
***   ***   ***

 सुना साहब आपने


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मेरे बारे में...
रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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Comments
20 Comments
20 टिप्पणियां:
  1. लिपट तो जाएं ए मौत तेरे दामन से लेकिन,
    हाथों में जीने की लकीर लंबी बहुत है।


    वाह !
    संभावनाएं बहुत अच्छी हैं अरविंद जी लेकिन आपको सहगामी होने के नाते सलाह दूंगा कि ब्लॉग जगत मे गजल की कई जगह कक्षाएं चलती हैं... उनमे शिरकत करना आपके लिए हितकर होगा
    ये कक्षाएं हिन्द युग्म पर और सुबीर संवाद सेवा पीआर मिल जाएंगी
    शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  2. @श्रीमान पद्म सिंह जी,

    आपका एक अच्छी सलाह के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे वाह !
    आपने तो आज एक मुकम्मल गजल पेश की है!

    जवाब देंहटाएं
  4. ganga me jal abhi hai aur hamesha rahega... to paap dhul hi jayenge, achha vyangya hai

    जवाब देंहटाएं
  5. इंसान को क्यूँ कोई खौफ रहा नहीं,
    तेरे शहर में मंदिर तो बहुत है....

    Aap mein gazal kahne ki sambhavnayein hain ...
    gazal yahaan bhi sikhai ja rahi hai ....

    तरही मुशायरा / इवेंट्स से जुड़े प्रश्नोत्तर

    जवाब देंहटाएं
  6. कलम हौसला रखती है ताज पलटने का,
    ये अलग बात, आज मजबूर बहुत है।
    sabase achchha yah laga...

    जवाब देंहटाएं
  7. "सच" कुरेद लूँ जख्म कुछ पुराने आज,
    अभी पथराई नजरों में, नमी बहुत है।

    अगर आप अन्यथा न ले तो एक बात कहना चाहुगॉ मै कोई लेखक नही हु मुझे नही पता गजल कैसे लिखी जाती है या कविता किस तरह की होती है। बस दिल के जज्बातों को कागज पर लेखनी के सहारे उतार देता हुॅ। ज्यादा लंबी लिखने के बजाय अगर छोटी और तथ्यपरक हो तो ज्यादा अच्छी लगेगी। कभी कभी ऐसा लगता है कि रास्ते से भटकती जा रही है। अगर बुरा लगे तो तहे दिल से माफी चाहता हु। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. @श्रीमान अमित जी,

    आपकी बात आपके द्वारा दिए सन्दर्भ में सही है, आपकी राय बहुत अच्छी है, लेकिन मैं मेरी पीड़ा को ही प्रदर्शित करता हूँ....हो सकता है गजल या कविता में भी कोई गणित हो, मुझे वो नहीं आती सच तो ये है की मैंने कभी सीखने का प्रयास भी नहीं किया, जो दिल में आता है वो लिख देता हूँ.

    आपने अपनी अमूल्य राय से वाकिफ करवाया, आपका तहे दिल से आभार.

    जवाब देंहटाएं
  9. इंसान को क्यूँ कोई खौफ रहा नहीं,
    तेरे शहर में मंदिर तो बहुत है.
    खुबसूरत गज़ल हर शेर दाद के क़ाबिल, मुबारक हो
    शायद मैंने पहली बार आपका व्लाग देखा है यह मेरी गलती है.......

    जवाब देंहटाएं
  10. .

    कलम हौसला रखती है ताज पलटने का , वो बात और है के मजबूर बहुत है आज ...

    very touching lines Arvind ji .

    All the couplets are fantastic .

    regards,

    .

    जवाब देंहटाएं
  11. GREAT invention that Google Translator and great it's your blog too !!!

    जवाब देंहटाएं
  12. बेहतरीन ग़ज़ल| धन्यवाद|

    आप को बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|

    जवाब देंहटाएं
  13. बेहतरीन प्रयास सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  14. अरविंद जी
    किस शेर की तारीफ़ करूं और किसे छोडूं? हर शेर ज़िन्दगी के दर्शन करा रहा है…………एक बेहतरीन रचना पढवाने के लिये आभार्।बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  15. Namste bhaiya....
    kaise ho...
    aapki poems are lovely...very deep..

    जवाब देंहटाएं

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