पहचाना कोई अनजाना बन कर निकला
था कोई अपना जो आंसू बन कर निकला।
एक वक़्त, वक़्त बेवक्त याद आता रहा,
बाकी वक्त जिंदगी का बीत कर निकला।
दिल में सजाये रखा एक ही अरमान,
दिल वो ही बेदर्दी से तोड़ कर निकला।
कौन समझ पाया है रौशनी को यहाँ,
अँधेरा जिनका अंजाम बन कर निकला।
"सच" उठी हैं जो आज ये सर्द हवाएं,
कोई धुँआ फिर दिल चीर कर निकला।
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bahut hi badhiyaa
जवाब देंहटाएं'सच' उठी हैं आज जो यह सर्द हवाएं ,
जवाब देंहटाएंकोई धुआं फिर दिल चीर कर निकला !
लाजवाब शेर ,बेहतरीन ग़ज़ल.
बधाई !
ला-जवाब" जबर्दस्त!! शेर ,बेहतरीन ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएं.....दिल से मुबारकबाद|
सच उठी है जो ये सर्द हवाए
जवाब देंहटाएंकोई दुआं फिर दिल चीर कर निकला
..............वह क्या बात है अरविन्द जी बहुत खूब
वाह व्बहुत सुन्दर... आपकी रचना कल चर्चा मंच पर होगी .. आपका आभार इस सुन्दर रचना के लिए...
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com
arvindji, pichle kai dinose apka blog nhi khul pa rha hai comment krne se phle hi band ho jata hai apki rchnayen gugalreader par pdhin
जवाब देंहटाएं'सच' उठी हैं जो आज ये सर्द हवाएं
जवाब देंहटाएंकोई धुआं फिर दिल चीरकर निकला
उम्दा शेर
लाज़वाब! बहुत सुन्दर गज़ल..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....हर शेर गज़ब का
जवाब देंहटाएंShrimaan aap ki kalpana aati uttam h
जवाब देंहटाएंI truly enjoyed reading this beautiful ghazal.
जवाब देंहटाएंअन्तिम पंक्तियां बहुत सुन्दर हैं..
जवाब देंहटाएंbahut khoob likha hai aapne
जवाब देंहटाएंPehchana koi anjana ban ker nikla
tha koi apna jo aanshu ban ker nikla "
dil ko chu gayi aapki ye panktiyan
बहुत अच्छी ग़ज़ल की रचना की है आपने।
जवाब देंहटाएंपढ़कर काव्य का रसास्वादन किया।