दर्द-ए-दिल का यूं इजहार न कर,
बेवजह ही सवाल जवाब न कर।
बहुत ही नाजुक है दिल उसका,
हर बात को इक इम्तेहान न कर।
दुनिया उसे क्या समझेगी आज,
दिल की किताब यूं खोला न कर।
मायूस सी हुई जिंदगी नफ़रतों में,
आज यहाँ बस प्यार की बात कर।
बड़े अजीब होते हैं दिलों के सौदे,
यहाँ न किसी बाजार की बात कर।
मंज़िलें तो मुकर्रर है सबकी यहाँ,
कहाँ जाना है तुझको यूं दौड़ कर।
"सच" जिंदगी उससे खफ़ा सी रही,
इक कतरा भी जी न पाया चाह कर।
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बहुत ही सुन्दर भावमयी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं......... शुभकामनाएं!!
आपने ब्लॉग पर आकार जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए आभारी हूं
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर मर्मस्पर्शी..
जवाब देंहटाएंबड़े अजीब होते हैं दिलों के सौदे,
जवाब देंहटाएंयहाँ न किसी बाजार की बात कर।
ग़ज़ल के अशआर में ताज़गी है।
मुबारकबाद, अरविंद जी।
आज यहाँ बस प्यार की बात कर ... अति सुन्दर ..वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भावमयी प्रस्तुति|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत गज़ल....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबड़े अजीब होते हैं दिलों के सौदे,
जवाब देंहटाएंयहाँ न किसी बाजार की बात कर।
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
वाह भाई वाह लगे रहिये !
बड़े अजीब होते हैं दिलों के सौदे,
जवाब देंहटाएंयहाँ न किसी बाजार की बात कर।
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..
वाह भाई वाह लगे रहिये !
बहुत ही नाजुक है दिल उसका
जवाब देंहटाएंहर बात को इक इम्तेहान न कर
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बढ़िया शेर .....अच्छे भाव
achhi hai bahut pasand ayyi
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर
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