कोई धुँआ फिर दिल चीर कर निकला Koi Dhua Phir Dil cheer Poem
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पहचाना कोई अनजाना बन कर निकला
था कोई अपना जो आंसू बन कर निकला।
एक वक़्त, वक़्त बेवक्त याद आता रहा,
बाकी वक्त जिंदगी का बीत कर निकला।
दिल में सजाये रखा एक ही अरमान,
दिल वो ही बेदर्दी से तोड़ कर निकला।
कौन समझ पाया है रौशनी को यहाँ,
अँधेरा जिनका अंजाम बन कर निकला।
"सच" उठी हैं जो आज ये सर्द हवाएं,
कोई धुँआ फिर दिल चीर कर निकला।
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