ज़िंदगी है ना जाने किस भरम के सहारे Jindagi Hai Poem Lyrics
किसी का दिल तोड़ना यहाँ कोई जुर्म नहीं,
हाँ इस गुनाह की यहाँ कोई सजा भी नहीं।
जज़्बातों के सहारे क्या कोई जिंदगी नहीं,
रो लें मगर आसुओं की कीमत भी नहीं।
उमर रह जाती है बस एक तलाश बनकर,
कुछ सवालों के यहाँ क्यों जवाब भी नहीं।
ज़िंदगी है ना जाने किस भरम के सहारे,
टूट जाये तो जीने की कोई चाह भी नहीं।
आज सच बड़ा शर्मिंदा होता है तेरे शहर में,
बदलने को उसके पास कोई चेहरा भी नहीं।
"सच" माना ज़िंदगी उलझी आज अँधेरों से,
मगर अँधेरों के बिना कोई उजाले भी नहीं।
हाँ इस गुनाह की यहाँ कोई सजा भी नहीं।
जज़्बातों के सहारे क्या कोई जिंदगी नहीं,
रो लें मगर आसुओं की कीमत भी नहीं।
उमर रह जाती है बस एक तलाश बनकर,
कुछ सवालों के यहाँ क्यों जवाब भी नहीं।
ज़िंदगी है ना जाने किस भरम के सहारे,
टूट जाये तो जीने की कोई चाह भी नहीं।
आज सच बड़ा शर्मिंदा होता है तेरे शहर में,
बदलने को उसके पास कोई चेहरा भी नहीं।
"सच" माना ज़िंदगी उलझी आज अँधेरों से,
मगर अँधेरों के बिना कोई उजाले भी नहीं।