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कुछ बातें हैं दिल की Kuch Bate Hain Dil Ki


"सच" कुछ बाते हैं दिल की,
एक एक करके कहता हूँ,
एक एक करके समेट लूँगा ।
"सच" यकी रख कोई आने से रहा,
चल आज घर को फिर से सजाते हैं।
"सच" मुझे अब समझाना नहीं,
अँधेरे जहाँ ले चले मुझे जाने दे।
"सच" कभी वक्त निकाल कर आना,
क्या क्या जला है आग में बताउंगा।
"सच" जाने जमाने को क्या हुआ,
देख आदमी बरसों से हंसा ही नहीं ।  
"सच" यूँ तो रात भी बड़ी वीरान है,
मगर तेरे बिना दिन भी सूना सा लगे ।

"सच" क्यों किसी से दिल लगाने लगा,
तेरे पास अब टूटने को बाकी क्या है।
"सच" दिल कुछ यूँ जलता है रोज,
आँखों में सदा सावन सा रहता है।
अंधेरों में ही वक्त कट जाए तो अच्छा है,
"सच" न जाने उजाले कितना तड़पाते होंगे।