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चुप कर दिया सदियों के लिए Chup Kar Diya Poem


क्या कहना था,
बदलते मौसम से,
यादों में भीगी नम हवाओं से,
उस दोपहर से,
जिसने बहुत भिगोया,
फिर उसी खारी बूँद ने,
चुप कर दिया सदियों के लिए....

***

जब भी खुद से मिला,
वक्त को रुकते हुए देखा,
फिर सब धुंधला,
वक्त में ही कहीं,
कुछ मिटता जाए,
जब भी खुद से मिला
***

किसी से चुराए थे,
कुछ अधूरे ख्वाब..
वो अपने से लगने लगे,
वो ही रंग वो ही खुशबू,
आज उनको फिर ढूंढता हूँ.

***

रोज संभालता हूँ,
पुरानी दीवारों को,
मगर रोज ही,
किसी दरार से,
कुछ रिसता है,