-->

गुरु Guru

सच्चा गुरु वही जो जीवन मुक्ति के मार्ग का ज्ञान दे, जीवन को जीने का सार्थक उद्देश्य दे। जरूरी नहीं की गुरु किसी आश्रम में तप करने वाला ही हो, वो हम लोगों में से कोई भी हो सकता है। जीवन का वर्तमान जो चलन है वो तो किसी भी रूप में उद्देश्य नहीं है। ये तो "हीरो पायो गांठ गंठियाओ" वाली बात है। अब जीव विज्ञानी के पास अपने तर्क हैं तो भौतिकी वाले के पास अपने कुछ अलग। लेकिन इनके तर्क भी ऐसे ही है मानो सुनार की तराजू सौ किलो की बोरी तौलना। ये हमारा सांस्कृतिक, आध्यात्मिक पतन ही है की धर्म को भी बाजारू बना डाला है, इसकी आड़ में ना जाने क्या क्या होता है। जीवन के उद्देश्य को अंधेरे से निकालने वाला ही गुरु है। सच्चा गुरु कैसा हो ? इसके संबंध में एक किस्सा सुनिए:-

एक बार एक व्यक्ति ने अपने पिता से पूछा की में इस जीवन में सच्चा गुरु नहीं ढूंढ पाया हूँ। सच्चे गुरु को कैसे खोजा जाये? पिता ने जवाब दिया "तुम कल सुबह सभी साधुओ के डेरे में जाओ और उन्हे गाली निकालो और शाम को मैं तुम्हें बताऊँगा की उनमे से सच्चा गुरु कौन है।

शाम को लड़का लौटा तो उसके सारे कपड़े फटे थे, अपने पिता को देखते ही चिल्ला कर बोला  "बापू अच्छी दुश्मनी निकाली है तूने आज, हड्डी के जोड़ जोड़ को ढीला करवा दिया" उसके पिता ने पूछा "बेटे क्या तुम्हें कोई भी नहीं मिला जिसने तुम्हें गाली के बदले पीटा ना हो?"

लड़के ने कहा " हाँ एक साधू मिला था, मैं उसको जितनी गाली निकाल सका निकाली, लेकिन वो तो मेरी और चुपचाप देखता ही रहा, और जब मैं थक गया तो उसने मुझे पीने के लिए पानी  दिया, और कहाँ की तुम्हे थोडा विश्राम करना चाहिए ।"

पिता ने कहा " वही तुम्हारा गुरु है, आज तुम्हें सच्चा गुरु मिल गया है, अभी जाओ और उसकी की शरण में समा जाओ"


गुरु बिना घोर अंधेरा,
बिना मूरत के जैसे मंदिर सूना,
नहीं वस्तु (उद्देश्य) का कोई बेरा (ज्ञान),
गुरु बिना घोर अंधेरा,
मृग की नाभि बसे कस्तुरी,
नहीं मृग को बेरा (ज्ञान),
ढूँढता फिरे रै भटकता,
सूंघे घास घनेरा (खूब सारे)
जब तक आग रहे पत्थर में,
नहीं पत्थर को बेरा,
चकमक लगे चोट सबद (गुरु ज्ञान) की,
फेंके आग चहुऔरा
गुरु बिन घोर अंधेरा