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रावण दहन Rawan Dahan



मेरा दादा भले ही हुक्का कमरा बंद करके पीता हो, दादा के पास इसके अपने कारण हैं, लेकिन जब कहता है तो खरी-खरी। शायद इसीलिए दूसरे बूढ़े उसे अपनी जमात में शामिल नहीं करते है। दादा को भी इसकी ज्यादा परवाह है नहीं। अबके दशहरे मैंने दादा से पूछा "दादा अबके रावण पिछली साल से दस फुट लंबा बनाया है, दोनों साथ ही चलते हैं, देखने।" दादा ने पहले तो मेरी और ऐसे देखा जैसे मैंने उसकी भैंस खोल ली हो, फिर बोला "ला पहले चूल्हे में से एक खीरा (अंगारा) ला, ये आजकल की औरते कहाँ सुनती है, आधे घंटे से बुझे हुये कोयले को सुगड़ रहा हूँ, अब तो ऊपर वाला जल्दी उठा ले इसी में फायदा है....... साथ वाले सारे चले गए बस मैं ही बचा हूँ... अब तू क्या मेरी छाती पर ही बैठा रहेगा.....जा जल्दी ला...."
मैंने भी दादा की बात मानने में ही भलाई समझी। खीरा हुक्के में डालते ही मानो जैसे दादा में "प्राण वायु" का संचार हो गया हो और हुक्के की लंबी गुडगुड खींच कर बोला " देख तू अभी जवान छोरा है, मेरे साथ चल कर क्या करेगा ? वैसे भी मैं नहीं जाने वाला कहीं, हमारे टाइम मैं हनुमान बनता था, मेरी गदा को मैंने आज तक संभाल कर रखा था, अब के जब मैंने लाधु की लुगाई से कहा की मेरी गदा कहाँ है तो बोली की उसको तो छोरे  बेच के आइसक्रीम खा गए....... अब खा गए तो खा गए, मैं कौनसा उसको साथ लेकर जाने वाला था......अब तो वो बात रही नहीं..........वैसे भी तू खुद ही देख ले की मेरे टाइम में रावण को राम मारता था, लेकिन आज तो "जिंदा रावण" "मरे रावण" को मारता है....अब तू जाइयों रावण को देखने.........मुझे तो टेम से ये लाधु की लुगाई रोटी दे दे इसी में भलाई समझ।"

दादा ने बातों ही बातों मैं इस समाज का वीभत्स चेहरा दिखा दिया। दादा को काहे को कोसें.... उसने कौनसी गलत बात कह दी ? जिस पर पचासों केस लगे हों, वो ही रावण को तीर से जलाता है, मतलब की रावण ही रावण को मारता है.......ठीक है न।

दादा की बात सुन कर मैंने भी अब के रावण दहन में ना जाने का मन बना लिया।