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मंदिर Mandir

रामप्रसाद की शादी को कुछ ही दिन बीतें होंगे की एक दिन उसकी माँ ने रामप्रसाद से कहा " बेटा, मैं  तुम्हें कितनी बार कह चुकी हूँ की शादी के बाद "गठजोड़े" की पूजा करने के लिए मंदिर जाना है, कल शनिवार है, मंदिर चलना है।"   रामप्रसाद का इन बातों में कतई विश्वाश न था, उसके अनुसार ये सब धार्मिक आडंबर होते हैं।
रामप्रसाद ने माँ के तरफ देखकर कहा " देख माँ, ये मंदिर जाने में क्या रखा है, भगवान गाँव के मंदिर में भी तो है, हम यहीं पर ही पूजा करवालेंगे, और फिर यहाँ से गाड़ी वाला भी तो छह सौ ले लेगा, मैं कहीं नहीं जाने वाला।" रामप्रसाद की माँ ने गुस्से से जवाब दिया " देख, आज तेरे पिताजी होते तो मैं तेरी शादी गाजे बाजे के साथ करती, अब क्या मंदिर भी नहीं जाएगा तू ?, लोग क्या कहेंगे की गठजोड़े की जात भी नहीं दिला सके.........नहीं तुझे चलना ही होगा "

रामप्रसाद ने माँ का मन रखने के लिए हाँ भर ली। अगली सुबह पूरा परिवार मंदिर के लिए रवाना हो गया। पूरे रास्ते माँ समझाती गयी की वहाँ कैसे पेश आना है, पंडित जी के चरण छूने है, हाथ जोड़कर रखने हैं....।

मंदिर में तरह तरह के पुजारी थे, लेकिन सभी में एक बात समान थी, सभी काफी मोटे ताजे थे । पूजा खत्म होते ही, पुजारी ने झट से कहा " माँ जी,  पाँच सौ इक्यावन से नीचे नहीं लूँगा........आपका इकलौता लड़का है....भगवान  जोड़ी सलामत रखे इनकी।"     माँ ने रुपए दिये और पंडित जी ने गिनने के बाद जाने का इशारा कर दिया। गर्भ गृह की ओर इशारा करके रामप्रसाद की माँ ने कहा " अब बस वहाँ माथा और टेक ले बेटा, फिर चलते है।" जैसे ही रामप्रसाद अपनी पत्नी के साथ वहाँ बढ़ने लगा पुजारी ने कहा " रशीद दिखाओ"
"कैसी रशीद, महाराज ?" रामप्रसाद की माँ ने पूछा।

"रशीद नहीं है तुम्हारे पास........फिर तुम गर्भ गृह में नहीं जा सकते.... इसके लिए काउंटर से पाँच हजार की रशीद कटवानी पड़ती है.......जाओ पहले रशीद बनवा के लाओ फिर आना।"

राम प्रसाद ने अपनी माँ की ओर देखा तो उसका चेहरा काफी उदास हो गया था। रामप्रसाद जानता था की माँ के पास पाँच हजार नहीं हैं। उसने अपनी माँ से कहा " माँ जब भगवान की मूर्ति हमें यहाँ से दिख रही है ....... तो फिर और नजदीक जाने से क्या फायदा होने वाला है ? .... चलो अब देर हो रही है।"

वापसी में रामप्रसाद की माँ पूरे रास्ते बड़बड़ाती रही " आज मेरे पास पाँच हजार होते तो, मैं तुम्हें गर्भ गृह में आशीर्वाद दिला के ही लाती।"