गरीब? Gareeb
कहने को तो आप मैं, हम सभी "धार्मिक" हो सकते हैं, लेकिन क्या वास्तव में हम धार्मिक हैं ? बड़ी खीज होती है ये देखकर की जब हम मानते हैं की धर्म का मूल ही मानव मात्र की सेवा करना है, तो ये दोहरा व्यवहार कैसा ? एक और तो सत्संग में जाते हैं, दान देते हैं, यानि की भगवान को खुश करते हैं अपनी कुटिल चतुराई से, वहीं दूसरी और जब कोई भिखारी कुछ मांग ले तो कहने लगते हैं की "मेहनत नहीं कर सकते क्या....... डरटी पीपुल ?" जब हम किसी मंदिर में जाते हैं, भिखारी को देखते ही गाड़ी के काँच चढ़ा लेते हैं। मंदिर में जाकर दान पात्र में भगवान को दिखा दिखा के नोट डालते हैं, जैसे उसे कुछ ज्ञान ही ना हो, वैसे भी मंदिर के दान पात्र का धन मिलता किसे है? जिस भगवान को बाहर ही छोड़ आए, वह अंदर क्या खुश होगा?
अमीर व्यक्ति अपने नाम के बोर्ड से काफी सारे मंदिर बनवा देगा, लेकिन क्या वह किसी गरीब की ज़िम्मेदारी उठाएगा? शायद वो ऐसा इसलिए करता है की जो है वो छिन न जाए।
मेरी व्यक्तिगत और परखी मान्यता के अनुसार भगवान को ना तो किसी एजेंट की जरूरत है, और ना ही किसी दान की, ना ही किसी स्थान विशेष की...... यदि हम किसी भी गरीब की सामर्थ्य के अनुसार मदद करें, किसी भी क्षेत्र में, तो यही सच्चा दान होगा और स्वीकार किया जाएगा।