चलो बटोर लूँ Chalo Bator Lu Poem
खुशियाँ बिखरी जो यहाँ वहाँ,
चलो बटोर लूँ,
आँगन आँगन खेलते, शोर मचाते,
बेवजह मिट्टी की ढेरी बनाते,
बार बार भूलते किससे थे झगड़े,
साफ दिल से मासूमियत बिखरी जो यहाँ वहाँ,
चलो बटोर लूँ,
बात बात पर टोकती,
समझाती माँ, लाड लड़ाती,
बड़ की छाया, सिर का साया माँ,
आँखों में गुंजाइस टटोलती माँ,
गाली में जिसके बिखरा जो प्यार यहाँ वहाँ
चलो बटोर लूँ
तिनको से सपनों के घर को सजाती,
रोज आती चिड़िया,
एक सुबह बिना बताए उड़ जाना जिनको,
देख देख उनको इठलाती चिड़िया,
छल से बिखरी जो निश्छलता यहाँ वहाँ
चलो बटोर लूँ,
निष्ठुर हवा के झौकों में, जीवन रस भरते,
काँटों के पहरो में, प्यार का जहां रचाते,
मुरझा कर गिरना जिनको,
फिर खिल रहा है नया फूल,
काँटों से बिखरी महक जीवन में जो यहा वहाँ,
चलो बटोर लूँ,
भागते चेहरे, वीरान चेहरे,
खुद को जुदा दिखाते,
हैं ये तेरे मेरे,
आदमी के चेहरे,
ठिकाना ढूंढते परेशान चेहरे,
चेहरे की भीड़ से हाथ हमदर्दी का बिखरा जो यहा वहाँ
चलो बटोर लूँ।
खुशियाँ बिखरी जो यहाँ वहाँ,
चलो बटोर लूँ,