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वो गांधी जी रोज बिना आँख झपकाए क्या देखते रहते हैं? Gandhi Ji Short Story

मुझे जब भी थोड़ा बहुत वक़्त मिलता है,  मैं मेरे लंगडपेंच वाले दादा के पास जाना नहीं भूलता हूँ। उसकी बेरुखी का कारण है उसके अंदर छुपी पीड़ा।

"दादा इस पहलवानी में कुछ नहीं रखा, कुछ पहन ले नहीं तो सर्दी लग जाएगी।" मैंने दादा से कहा।

" सर्दी तुम जैसों को लगती है, जो प्लास्टिक की रोटियाँ खाते हैं, तू फिकर मत कर बेटा......मैंने जवानी में इतना घी खाया है की अभी भी उसकी चिकनाई बाकी है...........जा हुक्का भर के ला।"  दादा ने हुक्का मेरी और सरकाते हुये कहा।

" ले, हुक्का तो मैं भर लाया, लेकिन दादा एक बात बता ये देश में भ्रस्टाचार बहुत फैल रहा है, सुना है गाँव में आज पुलिस किसी को पकड़ के ले गयी.....कोई नरेगा में घपले बाजी का मामला बताया......तू तो वहीं था ना, क्या देखा तूने।"  मैंने दादा से पूछा।

दादा ने मेरी और घूर कर देखते हुये कहा " तुम जैसे........तुम जैसे पढे लिखे लोगों ने इस देश को बर्बाद कर के रख दिया है, समझे ! तुम सारे पढे लिखे कुए में कूद मरो, ऊपर से पत्थर मैं डाल दूंगा...............आया बड़ा मुझसे पूछने वाला...........मैं क्या देखूंगा, क्या तुम्हें नहीं दिखता है चारों तरफ फैला ये भ्रस्टाचार। चल छोड़ तेरे से तो बात करना ही बेकार है........तेरी तो सोच ही सरकारी है। तू नौकर जो ठहरा, तुम्हे तो तनखाह ही चुप रहने की मिलती है। तू तो मुझे आज बस इतना बता दे की हरेक विभाग में भ्रस्टाचारी अफसर होते हैं, सब घूमने वाली कुर्सी पर बैठते हैं, उनके सामने एक गांधी जी की फोटू दिवार पर टकी होती है...........तो मुझे बता कि वो गांधी जी रोज बिना आँख झपकाए क्या देखते रहते हैं?"