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ये सूरज रोज सुबह यू ही नहीं, निकला करता है Ye Suraj Roj Subah Poem


अच्छा हो या बुरा ही मगर तू रख भरोसा,
एक दिन वक्त सबका बदल जाया करता है।

बे कदर आज जब जमाने वाले बने,
रोज रोज तू क्यूँ अश्क जाया करता है। 

कभी इससे या कभी कभी उससे भी,
दिल नाजुक है अक्सर टूट जाया करता है। 

जिंदगी तो जिंदादिली का नाम होती है,
जिंदा वही अश्क पीकर जो हँसा करता है। 

सुख दुख तो बस धूप छाँव का एक खेल,
यहाँ तो चाँद को भी ग्रहण लगा करता है। 

बड़ी पुरानी फितरत है इस आदमी की,
छेद करने को अक्सर थाली ढूंढा करता है। 

कभी जमाने से या फिर खुद से ही,
इंसान तो किसी न किसी से लड़ा करता है। 

सुन घमंड कैसा रे तू माटी का पुतला,
माटी का तो माटी में मिल जाया करता है। 

अनुसरण करना गुरु, साधू, पीर फकीरों का,
उसका नहीं जो कुर्सियों के लिए लड़ा करता है। 

जिंदगी में सच्ची कमाई इज्जत की,
दौलत वाला भी खाली हाथ जाया करता है। 

कुछ मदद का हाथ भी बढ़ाया कर,
दवाओं से नहीं दुआओं से इंसान जिया करता है। 

जी लौट कर भी मिलता है प्यार यहाँ तो,
बेवजह जो प्यार को लोगों में बांटा करता है. 

किताबों से बढ़कर दोस्त कौन मिलेगा,
कई सवाल जवाब एक किताबों में मिल जाया करता है।

कभी कभी हरी का नाम सुमर लिया कर
गयी जवानी बुढापे में बैठ पछताया करता है. 

बेफिकर मत हो जाना मन मानी करते करते,
ऊपर बैठा कोई तुम्हारे गुनाहों का हिसाब लिखा करता है। 

कहीं बैठ मत जाना मन हार कर,
चलता आदमी कहीं न कहीं पहुँच जाया करता है। 

जमाने से इतनी रुसवाई भी ठीक नहीं,
ढूँढने से आज भी नेक इंसान मिल जाया करता है। 

जाना तो सबको है कोई आगे कोई पीछे,
जिंदा रहेगा वही दूसरों के लिए जिया करता है। 

कभी छोड़ मत देना साथ "सच" का,
झूँठ के फैलाये लाख अँधेरों में भी वो तो चमका करता है। 

पढ़ना सीख इन दोस्ताना चेहरों को भी,
बात बात पर जो अचानक रंग बदल जाया करता है। 

दिल की बातें सबको मात बताना,
दोस्त वही बुरे दौर में जो काम आया करता है। 

सच्चा दोस्त करेले के समान,
वो दोस्त नहीं जो मीठा मीठा बोल भरमाया करता है। 

गम का साया क्यों ओढना जब,
मंजिल तो मुकरर खुदा किया करता है।

दफ्न करदे सीने में ज़िंदगी के दुख सारे,
फूल तो बेदर्द काँटों में भी महका करता है।

जिंदगी में माँ बाप की कदर कमाना,
गालियों में भी जिसके प्यारबिखरा करता है। 

सत् सत् नमन धरती माता के धीरज को,
अच्छा बुरा इंसान पैर रख जिस पर चला करता है। 

फिर उठ नहीं पाता है वो कभी भी,
एक बार जो नजरों से गिर जाया करता है। 

खैर मना मिला जो अनमोल मानव जीवन,
जवानी जोश में खोई बुढ़ापे में बैठ पछताया करता है। 

पुराना जान कर छोड़ मत किसी को,
पुरानी खुराक और दोस्त मुश्किल दौर में काम आया करता है। 

आत्मा की सुनना मन की नहीं,
मन तो ललचा कर दलदल में फसाया करता है। 

कितने एहसान हैं इन पेड़ों के भी,
खुद्दार इंसान अहसान किसी का चुकाया करता है। 

उजली चादर जरा संभाल के रखना,
मैली चादर को दिखाते इंसान शरमाया करता है। 

कुछ यकीन तो उस ऊपर वाले पर भी रख,
ये सूरज रोज सुबह यू ही नहीं निकला करता है।