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रंग बदलते हैं चेहरे भी यहाँ, हर पल, जरा संभल Rang Badalte Hain Chehare Poem


रंग बदलते हैं चेहरे भी यहाँ हर पल जरा संभल, 
जाने पहचाने चेहरों को अजनबी बनते देखा है मैंने। 

कहते करप्शन को पाप अपनी नेक सफेद जबान से,
छपे कागज के चंद टुकड़ों पे जमीर बेचते देखा मैंने।

क्या करना दौलत का जो इंसानियत ही भुला दे,
दौलत वालों को भी खाली हाथ जाते देखा है मैंने।

फिर सोच ले बहुत नाजुक होते हैं दिलों के मामले,
टूटा दिल फिर कभी यहाँ जुड़ता नहीं देखा है मैंने। 

तोड़ मत देना दोस्ती पुरानी दौलत के फरेब में आकर,
छूटा जिनसे साथ यादों में ढूंढते अक्सर देखा है मैंने। 

एक कमरा अंदर भी बनाना जहां कुछ पल अकेले बिताना,
बाहर वालों को भी आखिरकार अंदर आते देखा है मैंने। 

सच के भी बुलंद हौसले देख हर बार हार कर भी जाने क्यों,
बार बार सच को यूं ही बेवजह ही मुस्कुराते देखा है मैंने।