इस दौर में भी, जिंदा लगता हूँ Is Dour Me Bhi Poem
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रूह में कुछ जिंदा दफन है,
बरसों से खामोश लगता हूँ।
कुछ अधजली यादें बटोरी हैं,
अहसानमंद नसीब का लगता हूँ।
आरज़ू थी मुझे भी तेरे दर की,
तेरी गलियों से गुजरा लगता हूँ।
बड़ी दूर तलक भागा था मैं तो,
तेरी नज़रों में तो बेवफा लगता हूँ।
बिक ना पाये उसूल वक़्त रहते,
तेरे बाजार में अजनबी लगता हूँ।
कुछ मिला नहीं तो सब छोड़ दिया,
आज जिंदगी से तो रिहा लगता हूँ।
दोस्तों की दुआओं का असर भी देखो,
इस दौर में भी आज मैं जिंदा लगता हूँ।
"सच" जबां से क्यों फिसलता हर बार,
तू देख आज मैं खुद का दुश्मन लगता हूँ।