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लिपटी हैं तन पर आपकी यादें चाशनी होकर Lipati Hai Tan Par Aapki Yaden Poem


उफन रहे हैं अश्क तुफ़ान होकर,
पी गया जो कभी खामोश होकर। 

गुनगुनाती हैं आज ये सर्द हवाएँ,
चले थे हम किसी के साथ होकर। 

हाल-ए-बयां  कैसे हो जमाने से,
फूल क्या खुसबू से अलग होकर। 

आईना देखा तो ये खयाल आया,
गुजरे थे हम आपकी गली से होकर। 

खौफ  नसीब का भी अब हो कैसा,
क्या है मुक़द्दर आपसे जुदा होकर।

तमन्ना रही जो हमें आपके दर की,
अब जी रहे बस एक तमन्ना होकर। 

हम ले आए कश्ती को किनारे पर,
किनारा मिला भी तो तूफ़ान होकर।

बंजर शाख़ों पे हरे पत्ते खिल आए,
मिलने आई आज बहार लू होकर। 

रौशन हो उठे हैं जुगनू सारे आज ,
आपकी यादों में शामिल होकर। 

कोई सिखा दे हमें जीने का सलीका
ज़िंदगी बनी कायदों की किताब होकर। 

बेअसर हैं सारी कड़वाहटें ज़िंदगी की,
लिपटी तन पर यादें चाशनी होकर। 

"सच" जी लिए बहुत खुद की खातिर,
मर जाइए आज तो गैरों के होकर। 



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