
बरसों से दीवार पर,
टेढ़ी टकी खामोश तस्वीर तोड़,
गांधी जी बाहर निकल आए,
आगे बढ़कर महारानी लक्ष्मी बाई से,
तलवार उधार ले आए,
देखते ही देखते सामने चर रहे,
आवारा सरकारी सांड की गर्दन,
जड़ से हवा में उड़ा आए,
वापस तस्वीर में जाते
नेहरू से कहने लगे,
देखो, किसी को बताना नहीं,
एक दिन तो आखिर ये होना था,
पास ही पड़ी घड़ी जब बजने लगी,
तो पता चला,
अरे नहीं !............................. ये तो एक सपना था।







tasveeron ki aatma awashya aahat hoti hogi...
जवाब देंहटाएंye to ek sapna tha magar sambhav hai aisa ho aur hamari aatma jaage, bhrasht aacharan waalon se ladne ko kamar kas le!!!
saarthak lekhan!
ओह तो सपने भी राजनिती के ले रहे हैं। शायद अब गान्धी को सही मे तलवार की जरूरत है क्योंकि लातों के भूत बातों से नही मानते। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंशायद अब इसी की जरूरत है।
जवाब देंहटाएंअब इसी की जरूरत है। एक सार्थक स्वप्न !
जवाब देंहटाएंसपना ही रहेगा..
जवाब देंहटाएं... kaash ye sapnaa saakaar roop lele ... gandhi ji nahee to koi unakaa anuaai hi talwaar lekar sarkaari aur sarkaar chalaane vaale bhrasht saando ko kaat kaat kar ... behatreen rachanaa ... bahut bahut badhaai !!!
जवाब देंहटाएं@भारतीय नागरिक, सपनों को सच भी तो आप को, मुझ को, सबको ही करना होगा....
जवाब देंहटाएंयह तो होना ही था ..सपने सच्चे आने लगे हैं ..
जवाब देंहटाएंअच्छी कल्पना शक्ति पायी है यार लगता है कुछ अच्छा दे पाओगे यहाँ ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
nice
जवाब देंहटाएंअचकाच
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