तुम्हारे पास क्या बचेगा....कुछ भी नहीं रामप्रसाद Tumhare Paas Kya Bachega Hindi Short Story
शाम का वक़्त था। रामप्रसाद रोजाना की तरह सैर को निकला था आज उसके साथ सैर पर कार्यालय अधीक्षक महोदय भी थे।
कार्यालय अधीक्षक महोदय ने रामप्रसाद को समझाते हुये कहा "देखो रामप्रसाद तुम अब इस ईमानदारी का पुंछड़ा (पूंछ) छोड़ दो, आज तुम्हारे पास क्या है ? गाँव में बस एक छोटा सा घर.......तुम्हारे साथ वाले सभी पदोन्नति पाकर अच्छे पदों पर पहुँच गए है। तुम सुबह गाँव से चार बजे चलते हो और ठीक नौ बजे कार्यालय में आ जाते हो........तुम्हें पता है फिर भी तुम्हारे कार्यों में त्रुटि क्यों निकाली जाती है.....कारण जानते हो तुम्हारी सच बोलने की बीमारी और ईमानदारी का डंडा जो तुम हरदम अपने साथ लिए चलते हो। कल को तुम जब सेवानिवृत होओगे तब तुम्हारे पास क्या बचेगा....कुछ भी नहीं रामप्रसाद !.........कुछ भी नहीं।
रामप्रसाद ने जवाब दिया "देखिये साहब मेरे मन में कहीं रत्ती भर भी कोई संदेह नहीं है की मैं जो कर रहा हूँ वो सही है या नहीं, रही बात ईमानदारी और सच की तो श्रीमान जी मैं आप को बता दूँ की मैं ना तो किसी आदर्श से प्रेरित होकर ऐसा कर रहा हूँ और ना ही कुछ पाने को। जब मैं सेवानिवृती पाऊँगा मेरे पास एक आत्मसंतोष होगा की मैंने मेरे जीवन में कभी किसी का हक मार के नहीं खाया........मेरी आत्मा पर किसी तरह का बोझ नहीं होगा.......और साहब....................ये रुपया पैसा.......जमीन जायदाद सदियों से यहीं रही है, किसी के भी साथ नहीं गयी...फिर मेरे क्या साथ जाएगी.............जाना तो सब को है एक दिन..मालिक के घर................चलो छोड़ो साहब आप तो ये बताइये की आपको क्या लगता है की कल धूप खिलेगी या फिर कोहरा आज की तरह से ही रहने वाला है।