कैसे रखे परिंदा कोई उड़ान के हौंसले,
है आकाश भी सैयादों से मिला हुआ।
तोहमत दें कैसे जमाने की आग को,
है अपने ही चूल्हे की आग से घर जला हुआ।
खूब नाम कमाया ईमानदारी ने जमाने में,
मिला चन्दन जो हर बार घिसता हुआ।
किसने लिख दिया सच आज यहाँ,
शहर में फिर कवि कोई पागल हुआ।
बड़े मुश्किल हैं आदमजात के चेहरे पहचानना,
है हरेक चेहरा हजार चेहरों से ढका हुआ।
"सच" चलो किसी मंदिर को चंदा दे आएं,
आज बोझ रूह पर बर्दाश्त से बाहर हुआ।
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जवाब देंहटाएंहर एक चेहरा है ढका हज़ार चेहरों से ....
बिलकुल सही कहा आपने । हर क्षण बदलता रवैय्या इंसान का असली चेहरा ढक लेता है । आज साथ है , कब मुश्किल की घडी में बदल जाएगा , पता नहीं चलता।
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Thanks for this beautiful ghazal . Its so realistic .
जवाब देंहटाएंचन्दन को घिसने वाला तो ....हमेशा घिसता गया वक़्त के थपेड़ों में ...शुक्रिया अरविन्द जी ...बेमिसाल
जवाब देंहटाएंहरेक चेहरा हज़ार चेहरों से ढका हुआ..बहुत सटीक टिप्पणी..बहुत सुन्दर गज़ल..
जवाब देंहटाएंशहर में फिर कोई कवि पागल हुवा ...
जवाब देंहटाएंक्या सटीक बात कही है .. कलम की सेवा करने वाले अगसार पागल ही होते हैं ... लाजवाब ...
किसने लिख दिया सच आज यहां
जवाब देंहटाएंशहर में फिर कवि कोई पागल हुआ
हर शेर तारीफ के काबिल....
बड़े मुश्किल हैं आदमजात के चेहरे पहचानना,
जवाब देंहटाएंहै हरेक चेहरा हजार चेहरों से ढका हुआ।
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बहुत खूबसूरत और मुक्म्मल गजल लिखी है आपने!
"सच" चलो किसी मंदिर को चंदा दे आएं,
जवाब देंहटाएंआज बोझ रूह पर बर्दाश्त से बाहर हुआ।
ऐसा मत करना भाई। चंद लोगो ने ही तो इसे बचा कर रखा है। सुदंर नज्म। आभार।
harek chehrah hazar chero se daka hua hai ''''''''''''''sahi likha hai apne
जवाब देंहटाएंप्रासंगिक ...हकीकत का आइना है सभी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ..........लाजवाब पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंमेरि तरफ से मुबारकबादी क़ुबूल किजिये.
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