आदत तो नहीं थी गिला शिकवा की,
खामोश जिंदगी खामोशी से कटती नहीं।
जोड़ जोड़ देखता रहे कोई उम्र सारी,
टूटे दिल फिर कभी जुडते नहीं।
तूफान उठे मेरे दिल से कहकर यूं,
रेगिस्तान के हक में कोई फूल नहीं।
तुम्हारी खामोशी वहम था तुम्हारा,
नजरों को लफ्जों की जरूरत नहीं।
बीत चली जो ज़िंदगी अँधेरों में,
उसे किसी रौशनी की अब जरूरत नहीं।
कोई गजल कहे या कविता,
दर्द को किसी नाम की जरूरत नहीं।
"सच" भूल जायेगा ज़माना उस रोज तुम्हें शायद,
जिस रोज गर्मी आंशुओं के संग नहीं।
*** *** ***







Man ke bhaon ki sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंइरशाद
जवाब देंहटाएंइरशाद
इरशाद
इरशाद
इरशाद
तुम्हारी ख़ामोशी वहम था तुम्हारा ....
जवाब देंहटाएंवाह ! जबरदस्त अभिव्यक्ति !
बहुत सशक्त गजल पेश की है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंकोई गज़ल कहे या कविता .......अच्छी सोच
जवाब देंहटाएं"ला-जवाब" जबर्दस्त!!
जवाब देंहटाएं