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"खामोश जिंदगी खामोशी से कटती नहीं" Khamosh Jindagi Poem Lyrics


आदत तो नहीं थी गिला शिकवा की,
खामोश जिंदगी खामोशी से कटती नहीं। 
जोड़ जोड़ देखता रहे कोई उम्र सारी, 
टूटे दिल फिर कभी जुडते नहीं। 
तूफान उठे मेरे दिल से कहकर यूं,
रेगिस्तान के हक में कोई फूल नहीं। 
तुम्हारी खामोशी वहम था तुम्हारा,
नजरों को लफ्जों की जरूरत नहीं। 
बीत चली जो ज़िंदगी अँधेरों में,
उसे किसी रौशनी की अब जरूरत नहीं। 
कोई गजल कहे या कविता,
दर्द को किसी नाम की जरूरत नहीं। 
"सच" भूल जायेगा ज़माना उस रोज तुम्हें शायद,
जिस रोज गर्मी आंशुओं के संग नहीं। 
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