सच जबां से फिसला हरबार Sach Juba Se Phisala Poem Lyrics
सच जबां से फिसला हरबार
सच जबां से फिसला हरबार,
उसे पत्थरों से टकराने का शौक बहुत है।
इंसान को क्यूँ कोई खौफ रहा नहीं,
तेरे शहर में मंदिर तो बहुत है।
दाग चादर में लगा तो जान जाओगे,
मैली चादर दिखाते शरमाना बहुत है।
पाप की फिक्र नहीं जमाने को,
सुना अभी गंगा में जल बहुत है।
सुना अभी गंगा में जल बहुत है।
कलम हौसला रखती है ताज पलटने का,
ये अलग बात, आज मजबूर बहुत है।
हाथों में गरीबी उतर आई दोस्ती के लिए,
हाथ दोस्ती की आग में जला बहुत है।
तूफान तो एक ही गुजरा था,
उसके गुनाह के गवाह बहुत हैं।
जाने क्यूँ तोड़ता है ज़माना दिलों को,
तोड़ने के लिए कसमें बहुत हैं।
तोड़ने के लिए कसमें बहुत हैं।
हाल ए बयां क्या इश्क का जमाने में,
वो जमाने के आगे, रोया बहुत है।
वक्त ने छीना एक जीने का बहाना,
लोगों से सुना जीने के बहाने बहुत हैं।
फुरसत नहीं जिंदगी का साथ निभाने की,
फुरसत नहीं जिंदगी का साथ निभाने की,
ग़मों को लफ्जों में अभी ढालना बहुत है।
लिपट तो जाएं ए मौत तेरे दामन से लेकिन,
हाथों में जीने की लकीर, लंबी बहुत है।
"सच" कुरेद लूँ जख्म कुछ पुराने आज,
"सच" कुरेद लूँ जख्म कुछ पुराने आज,
अभी पथराई नजरों में, नमी बहुत है।