टूटा कोई ख्वाब अधूरा होकर,
गुजरा दिन आज खफा होकर।
रहता जो दिल में ही कहीं,
मिला आज अजनबी होकर।
परवाह तो ना थी कभी जमाने की ,
निकले तो तेरे आगे मजबूर होकर।
हैं हाथों में तो लकीरें बहुत,
गुजरी लेकिन तंगनज़र होकर।
"सच" हुआ यादों का दखल यूं,
भर आया मेरा दिल गजल होकर।
*** *** ***