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अल्टिमेटली गाय तो हमारी माता है Gaay To Hamari Mata Hai Short Story


रामप्रसाद को कार्यालय में सुबह-सुबह आते ही बताया गया की आज सभी कर्मचारियों की एक आपात बैठक का आयोजन किया जायेगा। बैठक में चर्चा का मूल विषय था कार्यालय के सामने पड़ी मरी हुई गाय। गाय को परलोक सिधारे तीन दिन बीत चुके थे लेकिन अभी तक गाय को किसी दूसरे स्थान पर नहीं डाला जा सका, इस कारण मारे बदबू के सांस लेना भी दूभर हो चला था। बड़े साहब गाय को काफी दिनों से बीमार बता रहे थे जबकि सभी मन ही मन जानते थे की अनपढ़ निरीह गाय की अकाल मौत का कारण बुद्धिजीवियों द्वारा प्लास्टिक की थैलियों में बंद फैका गया सभ्य कचरा ही था।

बैठक में सरकारी सफाई कर्मचारी ने यह कहकर तुरंत पल्ला झाड़ लिया की उसका काम सफाई करना है, किसी मरे जानवर को फेंकना नहीं, और ना ही किसी मरे जानवर को उठाना उसकी सेवा शर्तों में शामिल है। आस पास के लोगों के पास तर्क था की गाय सरकारी कार्यालय के अधिकार क्षेत्र में मरी है इसलिए गाय को उठाने का कार्य भी सरकार द्वारा ही होना चाहिए।

पूरी बैठक के दौरान बड़े साहब ही बोलते रहे। दोनों तरफ बैठे कुछ कर्मचारी जरूरत पड़ने पर सुर में सुर मिलाये जा रहे थे। एक दो कर्मचारी चुपचाप सुने जा रहे थे, वो बड़े साहब की बातों से कतई सहमत दिखाई नहीं दे रहे थे, लेकिन शायद उनके पास चुप रहने के सिवाय कोई दूसरा चारा भी नहीं था।

आखिरकार बड़े साहब ने निर्णय लिया गया की अंतिम समय में जरूर गाय किसी गंभीर अज्ञात बीमारी का शिकार रही होगी, इसलिए इसे किसी विशेषज्ञ द्वारा गहन जांच पड़ताल के बाद ही उठवाया जाना चाहिए ताकि इससे किसी प्रकार की कोई बीमारी फैलने की कोई संभावना न रहे। गाय से संबन्धित पूरा मामला आनन फानन में स्वास्थ्य विभाग को सौंप दिया गया।

गाय को प्राण त्यागे आज पांचवा दिन बीतने को था। सभी को स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के आने का बेसब्री से इंतजार था।

जब हालत असहनीय होने को आई तो अडौस पड़ौस के कुछ लोगों ने सेवा भाव से गाय को दूर डालने का प्रस्ताव बड़े साहब के सामने रखा। बड़े साहब ने दो टूक जवाब दिया की अब बात उनके विभाग की रही नहीं, अब पूरा मामला स्वास्थ्य विभाग को सुपुर्द कर दिया है इसलिए वो गाय से दूर रहें तो ही अच्छा है।

छठे रोज आखिरकार स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी लावलश्कर के साथ आए और मृत गाय का मौका मुआवना किया, जिसका खर्चा था मात्र सात हजार रुपए। निरीक्षण के बाद आस पास के इलाके में किसी अज्ञात दवाई का छिड़काव किया गया जिसका खर्चा था मात्र आठ हजार रुपए। आखिर में गाय उठाने वाले विशेषज्ञों द्वारा गाय को सरकारी वाहन से बहुत दूर डलवाया गया, जिसका खर्चा था मात्र पंद्रह हजार रुपए। कुल मिलाकर गाय को उठवाने के पीछे मोटा मोटा खर्च था मात्र तीस हजार रुपए।

सभी कार्य विधि विधान से सम्पन्न होने के कई दिनों के बाद एक रोज बड़े साहब ने फिर से कर्मचारियों को संबोधित करते हुये गर्व से कहा " देखिये ये बात कतई मायने नहीं रखती की गाय को उठवाने में कितना पैसा खर्च हुआ और कितना समय लगा, मूल बात है की आप सभी के सहयोग से कई बीमारियाँ फैलने से रुक गई....और हमने गाय के प्रति अपना सम्मान भाव भी दिखाया है....अल्टिमेटली गाय तो हमारी माता है।"

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