लघु कथा - "इस्तीफा" Istifa Hindi Short Story
आज शर्मा जी जाने किस उधेड़ बुन में चले जा रहे थे की अचानक ही किसी चिर परिचित आवाज ने उन्हें रोक दिया।
"अजी बाबूजी आज क्या बात है सीधे ही निकले जा रहे हो ? आजाओ आप के लिए चाय तैयार है । शर्मा जी आज कुछ खोये खोये से लग रहे हो, सब खैरियत से तो है ना ।".
"नहीं कुछ नहीं .....आज थोड़ी तबियत सही नहीं है ।" शर्मा जी गोपाल चाय वाले से कहा । चाय पीते -पीते शर्मा जी सोचने लगे की जब सुलोचना , उनकी धर्मपत्नी , थी तो रोज सुबह सुबह चाय मिल जाती थी। उसे गए कई साल बीतने को आये थे, बस यूँ ही नाराज होकर ऐसी गई की कभी वापस ही नहीं आई।
"अजी बाबूजी आज दफ्तर नहीं जाना क्या ? क्या बाबूजी आपने तो बताया ही नहीं की त्रिपाठी जी को सस्पेंड कर दिया, मर गया साला फांसी लगा के .......अखबार में छपा है...... अब आप तो बताते नहीं हो पर हम तो पूरी खबर रखते है । बडा सचाई का पुतला बनता था । आप तो वही थे ना..... बाबू जी मैं आप से पूछ रहा हूँ..... क्या आपने देखा की वो साला त्रिपाठी बच्चों का दूध अपने घर ले जा रहा था । आपने ये अच्चा किया जो गवाही दी की वो त्रिपाठी जो ईमानदारी का ढोल अपने गले में डालकर फिरता था, आपके सामने दूध चुराकर ले जा रहा था।" गोपाल ने चाय थमाते हुए कहा ।
" हाँ भाई हाँ...कितनी बार कहूँ की मैंने देखा था.....अब क्या पूरे शहर में ढिंढोरा पीट कर आऊ..... जिसे देखो एक ही बात पूछता रहता है।" शर्मा जी ने झुँझलाते हुए जवाब दिया ।
यह कहकर शर्मा जी अचानक वहाँ से चल पड़े। गोपाल ने शर्मा जी को पहले कभी इतने गुस्से से बात करते नहीं देखा था। वह कुछ समझ पता उससे पहले ही शर्मा जी विद्यालय को जा चुके थे ।
" शर्मा जी आप के बयान लेने के लिए क्षेत्रीय कार्यालय से अधिकारी आये है, बड़े साहब ने आप को अभी बुलाया है चेंबर में।" चपरासी ने शर्माजी को कहा ।
" क्या बात है आजकल बहुत देरी से आते हो , आधे दिन का अवकाश लगाना पड़ेगा, तभी मानोगे क्या ?" बड़े साहब ने गुस्से से शर्माजी को कहा ।
"लेकिन साहब अभी तो पूरे नो भी नहीं बजे है ? "
"क्या नो भी नहीं बजे हैं ?, तुम ज्यादा होंशियार हो गए हो या मेरी घडी खराब ही है, यही मतलब है न तुम्हारा"
"नहीं साहब माफ करना आइन्दा मैं और जल्दी आ जाऊंगा।" शर्माजी ने बड़े साहब को जवाब दिया ।
" ठीक है, ठीक है, अब जाओ और मैंने जैसा कहा था त्रिपाठी के खिलाफ तुरंत लिखकर लाओ, क्या तुम्हे मालूम नहीं की आज इनक्वैरी आई है और विष्णु से भी लिखवा लेना । "
" लेकिन साहब.....वो विष्णु तो उस दिन छुट्टी पर था." तुम्हारा भेजा तो घास चरने गया है, लाओ हाजिरी रजिस्टर में उसकी छुट्टी काटकर ओ डी लगा देता हूँ । तुम जाओ और जैसा मैंने कहा वैसे ही करो । और देखना जो बड़े साहब बयान लेने आये है वे पानी नहीं पीते है उनके लिए बाजार से एप्पल का ज्यूस आया की नहीं ।" बड़े साहब ने हाजिरी रजिस्टर में विष्णु की ओडी लगाकर कहा ।
शर्मा जी ने आकर देखा की अभी दफ्तर में उनके अलावा कोई भी नही आया है । शर्मा जी ने वही पुरानी फाइलें निकाली और कुछ लिखने लगे।
शर्मा जी जब दुबारा बड़े साहब के पास पहुचे तो शर्मा जी के हाथ में लिखा कागज देखकर साहब के चेहरे पर ऐसी मुस्कान आ गई जैसे की किसी गिध्द ने मरा जानवर देख लिया हो ।
" हाँ शर्मा जी जैसा मैंने कहा था वैसे ही लिखा है ना" बड़े साहब ने मुस्कुराते हुए पूछा।
" नहीं साहब ..........अब बहुत हो गया साहब , त्रिपाठी को ऊपर जाकर क्या जवाब दूँगा......... अब ये झूठ किसी और से लिखवाना ............इसमें मेरा इस्तीफा है, यही मेरा प्राश्चित है।
बड़े साहब चिल्लाते रह गया और शर्मा जी कदम बढ़ाते बढ़ाते विद्यालय से बाहर आ गए।
"अरे गोपाल एक बढ़िया सी चाय तो पिला .............और तू क्या पूछ रहा था ?" शर्मा जी ने गोपाल से पूछा।
आज शर्मा जी के चेहरे पर जो चमक थी उसे किंचित भी उनका इस्तीफा धूमिल न कर पाया था ।
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