किसी का दिल तोड़ना यहाँ कोई जुर्म नहीं,
हाँ इस गुनाह की यहाँ कोई सजा भी नहीं।
जज़्बातों के सहारे क्या कोई जिंदगी नहीं,
रो लें मगर आसुओं की कीमत भी नहीं।
उमर रह जाती है बस एक तलाश बनकर,
कुछ सवालों के यहाँ क्यों जवाब भी नहीं।
ज़िंदगी है ना जाने किस भरम के सहारे,
टूट जाये तो जीने की कोई चाह भी नहीं।
आज सच बड़ा शर्मिंदा होता है तेरे शहर में,
बदलने को उसके पास कोई चेहरा भी नहीं।
"सच" माना ज़िंदगी उलझी आज अँधेरों से,
मगर अँधेरों के बिना कोई उजाले भी नहीं।
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लघु कथा : साहब धरती मेरी माँ है | ||
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क्या बात..... गहन अभिव्यक्ति लिए हैं सभी पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा। आभार।
जवाब देंहटाएंबार बार पढ़ने का मन कर रहा है.
जवाब देंहटाएंBeautiful creation ! Enjoyed reading .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंलाजवाब ! बहुत उम्दा .....
जवाब देंहटाएंthoughts to bear in real life......no words to praise your words
जवाब देंहटाएंआप सभी ने ब्लॉग पर पधारकर उत्साह बढ़ाया है आपका शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंआज सच बड़ा शर्मिंदा है तेरे शहर में
जवाब देंहटाएंबदलने को उसके पास कोई चेहरा भी नहीं
.................सच्चा शेर
आपने अपने ब्लाग का अच्छा उपयोग किया है शुक्रिया ! कृपया आप भी भारत स्वाभिमान के साथ मिल कर देश के लिए सहयोग करें
जवाब देंहटाएं@ श्रीमान मदन शर्मा जी, आपका तहेदिल से आभार...कभी वक्त मिले तो इस संबंध में आपकी अमूल्य राय arvindjangid@rocketmail.com or "आपके सुझाव" पर जाकर अवगत करवाने का श्रम करें. आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना .
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