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28.11.11

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खामोश चेहरा




रामप्रसाद सरकारी दफ्तर में लिपिक था। उसे नौकरी लगे कुछ ज्यादा वक्त हुआ नहीं था। वो नौकरी के दाव पेंच, उतार चढ़ाव से कुछ कम ही वाकिफ़ था। मगर थोड़े ही समय में उसने इतना तो जरूर समझ लिया कि नौकरी चाहे सरकारी हो या निजी, वो भी समाज के बुरे और अच्छे प्रभावों से प्रभावित होगी ही, और सरकारी नौकरी उतनी आसान भी नहीं जितनी दूर से दिखती है। 

रामप्रसाद जिस कार्यालय में काम करता था वहाँ खाली पड़े एक लिपिक पद के लिए प्रतियोगिता परीक्षा होनी थी। एक उडती हुई खबर गलती से रामप्रसाद के कानों में भी पड़ी कि परीक्षा में तो बड़े साहब के 'साले जी' का ही चयन होना है, चाहे कितने और कैसे भी, होंशियार और बुद्धिसंपन्न आशार्थी आयें परीक्षा देने के लिए। परीक्षा का प्रश्न पत्र साले जी पहले से ही दे दिया गया है और वो रोज उन्ही सवालों को हल करता है जो परीक्षा में पूछे जाने वाले हैं। एक बार तो रामप्रसाद के मन में आया कि क्यों न इसकी शिकयात ऊँचे अधिकारियों से की जाए। मगर पूर्व के शिकायत करने संबंधी उसके अनुभव कुछ अच्छे नहीं थे, इसलिए उसने मन ही मन मान लिया की 'साधो गुड से मीठी चुप' । एक बार जब उसने ऐसे ही किसी मामले की शिकायत उच्च अधिकारियों से की थी तो अधिकारी महोदय रामप्रसाद को समझाते हुए कहने लगे " देखो, तुम्हे सरकार ने शिकायत करने और पुलिस की तरह जुर्म की जाँच पड़ताल के लिए तो भर्ती किया नहीं है। तुम तुम्हारा काम करो, जिसके लिए तुम्हे रखा गया है। अब कौन क्या कर रहा है, अच्छा या बुरा, इससे तुमको क्या लेना देना....क्या नाम बताया था तुमने.....हाँ रामप्रसाद ! ये तुम्हारी पहली गलती है सो माफ किये देता हूँ, अबकी बार अगर ऐसा-वैसा कुछ भी किया तो नतीजा तुम ही भुगतोगे....अब जाओ यहाँ से और दुबारा कभी नेता-वेता बनने की कोशिश मत करना।" बाद में रामप्रसाद को पता चला की जिस अधिकारी की उसने शिकायत की थी उसने उच्च अधिकारी महोदय को दस हजार का मोबाइल फोन गिफ्ट में दिया था।

परीक्षा से कुछ वक्त पहले परीक्षार्थी जुटने लगे। उनकी योग्यताओं को देखते हुए उनकी मजबूरियों का अनुमान आसानी से लगाया जा सकता था क्योंकि परीक्षा देने आये नौजवानों काफी पढ़े लिखे थे, उनकी योग्यता काफी ऊँची थी मगर वो लिपिक पद के लिए परीक्षा देने आये थे, ऊपर से पद भी तो एक ही था। दफ्तर के नियत समय में अभी कुछ वक्त था। रामप्रसाद परीक्षा देने आये लोगों में पहुँचा और वहाँ खड़े एक बुजुर्ग से बाते करने लगा। बुजुर्ग काफी शांत और सुलझे हुए विचारों का लग रहा था। उसने बताया कि वो पहले सेना में सिपाही था और वो अपने लडके को परीक्षा दिलवाने आया है, उसके लड़के ने परीक्षा की मन लगा कर तैयारी की है। बुजुर्ग पुत्र के चयन होने के बारे में काफी निश्चिन्त दिख रहा था। रामप्रसाद को सब जानते हुए भी चुप था। ये उसकी 'अत्याचार' पर मौन स्वीकृति हो या फिर उसकी कोई मजबूरी...ये तो ऊपर वाला ही जानता है। हाँ मगर रामप्रसाद के चेहरे पर अपराध बोध को साफ पढ़ा जा सकता था। 

कार्यालय में पहुँचने पर रामप्रसाद ने वो ही देखा जो कि देखना था और देखना चाहिए या कह लीजिए कि जो देखना ही था। बड़े बाबूजी, साहब के साले 'जी' की खुशामद में बीजी थे। साले जी जिस कोल्ड ड्रिंक को बपौती समझ कर गटागट पिए जा रहे थे उसका फर्जी बिल किसी दूसरे काम से बनने वाला था, मसलन वृक्षारोपण वाले आये थे, उनकी आवभगत पर व्यय राशि......../- उस 'बिल' से दूसरे बाबुओं ने भी कई आशाएं लगा रखी थी क्योंकि उसके  'पास फॉर पेमेंट'  में से सभी को कुछ न कुछ हिस्सा मिलने वाला था, मगर हैसियत के मुताबिक़। बाहर परीक्षा देने आये लोगों को पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं करवाया गया था मगर इसकी चिंता करने वाला कोई न था, हाँ मगर पानी के टैंकर का बिल जरुर बनने वाला था। बिल भी इतनी सफाई से बनने  वाला था कि कोई 'अंकेक्षण दल'  उन्हें पकड़ न पाए और वैसे ये भी सच है कि ऑडिट वाले भी होते तो हम जैसे ही हैं, वो कोई एलियंस तो हैं नहीं, वो भी छोटी मोटी कोई कमी बस इसीलिए निकालते हैं जिससे उन्हें भी कुछ हिस्सा मिल जाए, उनका मेहनताना समझ लीजिए या अधिकार, कुछ भी। 

परीक्षा हो गयी जैसे कि होनी थी और परिणाम भी जल्दी ही आ गया। परिणाम सूचि रामप्रसाद को थमाते हुए बड़े बाबूजी रामप्रसाद से कहने लगे "परिणाम सूचि में बड़े साहब के साले 'जी'  का नाम आगे से चयनित होकर आया है.....बड़ा ही प्रतिभावान व्यक्ति आ रहा है हमारे बीच, देखो, बाकी सब काम छोड़ो और उनके नाम से 'काल लेटर' बना दो, बड़े साहब तीन बार बुला चुके हैं मुझे इस के लिए...।"  रामप्रसाद को भी 'साले जी' की प्रतिभा पर कोई शक न था, मगर वो ये भी जानता था कि उस 'प्रतिभावान साले जी' का काम भी उसे ही करना होगा। 

टाइप मशीन पर 'काल लेटर' को जोर जोर से पिटते वक्त रामप्रसाद को यूँ लग रहा था मानों उस बुजुर्ग का खामोश चेहरा उसे लेटर बनाने से रोके जा रहा था और बड़ी ही खामोशी से हजारों सवाल एक साथ ही पूछ रहा था। 


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रहने वाला : सीकर, राजस्थान, काम..बाबूगिरी.....बातें लिखता हूँ दिल की....ब्लॉग हैं कहानी घर और अरविन्द जांगिड कुछ ब्लॉग डिजाईन का काम आता है Mast Tips और Mast Blog Tips आप मुझसे यहाँ भी मिल सकते हैं Facebook या Twitter . कुछ और

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5 Comments
5 टिप्पणियां:
  1. सच्ची बात कहती बहुत ही रोचक कहानी ,समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.com/.

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  2. Heart touching story specially for struggelar unemployee youngesters... Thanks Arvind Jangid Ji.

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  3. सत्य .... कडुवा सत्य लिखा है ... इस समस्या का हल चाहने पर भी खोज पाना मुश्किल है अब तो अपने देश में ...

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