
लिखा लकीरों का कभी मिटना नहीं,
है वो पत्थर जो कभी पिघलना नहीं,
क्या क्या खोना है और क्या पाना है,
पत्थर कोई दर्द बनकर रह जाना है।
क्या क्या खोना है और क्या पाना है,
पत्थर कोई दर्द बनकर रह जाना है।

खुद से बढ़कर तेरा कोई मीत नहीं,
मिलना कुछ तो कुछ छूट जाना है,
बड़ा नाजुक है दिल कहीं टूट जाना है।
कुछ रिश्ते तो वक्त से भी टूटते नहीं,
आंसुओं से जख्म दिलों के भरते नहीं
जख्म गिनकर वक्त सारा बीत जाना है,
इक रोज साँसों का समंदर रीत जाना है।








सर्वप्रथम बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
सूचनार्थ!
बैशाखी की शुभकामनाएँ और जलियाँवाला बाग के शहीदों को नमन!
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता ,,,,धन्यवाद
नमस्कार जी,
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ये कविता बहुत पसंद आयी है!!!!
प्रेम से परिपूर्ण भावमयी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकुछ रिश्ते तो वक्त से भी टूटते नहीं,
जवाब देंहटाएंआंसुओं से जख्म दिलों के भरते नहीं
जख्म गिनकर वक्त सारा बीत जाना है,
इक रोज साँसों का समंदर रीत जाना है।... यूँ इस सफ़र को ख़त्म होना है
रूठे को मनाये जमाने में रीत नहीं,
जवाब देंहटाएंखुद से बढ़कर तेरा कोई मीत नहीं,
मिलना कुछ तो कुछ छूट जाना है,
बड़ा नाजुक है दिल कहीं टूट जाना है।
बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियां।