इक रोज साँसों का समंदर रीत जाना है Ek Roj Sanso Ka Samandar Poem
लिखा लकीरों का कभी मिटना नहीं,
है वो पत्थर जो कभी पिघलना नहीं,
क्या क्या खोना है और क्या पाना है,
पत्थर कोई दर्द बनकर रह जाना है।
रूठे को मनाये जमाने में रीत नहीं,क्या क्या खोना है और क्या पाना है,
पत्थर कोई दर्द बनकर रह जाना है।
खुद से बढ़कर तेरा कोई मीत नहीं,
मिलना कुछ तो कुछ छूट जाना है,
बड़ा नाजुक है दिल कहीं टूट जाना है।
कुछ रिश्ते तो वक्त से भी टूटते नहीं,आंसुओं से जख्म दिलों के भरते नहीं
जख्म गिनकर वक्त सारा बीत जाना है,
इक रोज साँसों का समंदर रीत जाना है।