क्या कहना था,
बदलते मौसम से,
यादों में भीगी नम हवाओं से,
उस दोपहर से,
जिसने बहुत भिगोया,
फिर उसी खारी बूँद ने,
चुप कर दिया सदियों के लिए....
***
जब भी खुद से मिला,
वक्त को रुकते हुए देखा,
फिर सब धुंधला,
वक्त में ही कहीं,
कुछ मिटता जाए,
जब भी खुद से मिला
***
***
किसी से चुराए थे,
कुछ अधूरे ख्वाब..
वो अपने से लगने लगे,
वो ही रंग वो ही खुशबू,
आज उनको फिर ढूंढता हूँ.
***
रोज संभालता हूँ,
पुरानी दीवारों को,
मगर रोज ही,
किसी दरार से,
कुछ रिसता है,







बढ़िया प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
अपने से मिलना ही सबसे उम्दा मिलन है.
जवाब देंहटाएंरोज संभालता हूँ,
जवाब देंहटाएंपुरानी दीवारों को,
मगर रोज ही,
किसी दरार से,
कुछ रिसता है,
अत्यंत भावपूर्ण और गंभीर भाव लिये है सभी क्षणिकाएँ. बहुत सुंदर.
Your creations are very realistic. It makes me emotional...
जवाब देंहटाएंThanks ZEAL madam Ji !!
हटाएंभावना का अचूक प्रवाह ....
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